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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ योग और साधना पहली बार वह अकल्पनीय सूक्ष्म शरीर हमारे मस्तिष्क के अनुभवों में साकार हो उठता है और हमारा मस्तिष्क पहली बार उस सूक्ष्म शरीर के अस्तित्व को मानने को तैयार होता है। कुछ लोग सोते हुए नींद में स्वप्न वाले शरीर को सूक्ष्म शरीर मानने की गलती कर जाते हैं या दूसरे लोग ध्यान करते समय बिना कुण्डलिनी जागरण के ही किसी इच्छित स्थान पर अपनी इच्छा शक्ति के द्वारा पहुँचने की क्षमता ऐच्छिक शरीर से कर लेते हैं। लेकिन ये दोनों ही शरीर सूक्ष्म शरीर नहीं है । इनको हम क्रमशः मनस्, शरीर या एच्छिक शरीर कह सकते हैं लेकिनकि ये दोनों ही शरीर किसी भी तरह वर्तमान को छोड़कर भूत और भविष्य से नहीं जुड़ते इसलिए इनका इस साधना में कोई खास महत्व नहीं है। अक्सर तो ऐसा ही होता है कि स्वाँस पर से पता नहीं कब का ध्यान टूट जाता है जब होश आता है तब पता चलता है कि मैं तो नींद में चला गया था अथवा जब बैठा हुआ निद्रित शरीर गिरने को होता है तब झटके से आँख खुल जाती । साधक की ऐसी अवस्था साधारण लोगों को अवस्था से तो ऊँची है लेकिन इस अवस्था का उस तूर्या अवस्था से किसी भी प्रकार का तथा किसी भी प्रकार से कोई भी सामंजस्य नहीं है और न ही ये क्षमतायें किसी भी प्रकार से साधक की उन्नति में सहायक होती है । जैसे हम किसी राजमार्ग पर जा रहे हैं और चलते-चलते उस राजमार्ग में से कोई अन्य मार्ग निकलता है। हम अनायास ही उस पर चलने लगते हैं। आगे चलने पर यह मार्ग अवरुद्ध हो जाता है तब हमारे सामने दो स्थितियाँ पैदा हो जाती हैं । एक तो यह कि हम अपनी यहाँ तक की यात्रा को सम्पूर्ण यात्रा मानकर आगे की यात्रा हम न करें और हम विश्राम में आ जायें अथवा उस मार्ग से लौटकर फिर से हम राजमार्ग पर आ जायें और न जाने कितने साधक इन निचली स्थितियों को पाकर अपने आप को धन्य समझने लगते हैं। इसी प्रकार बहुत से साधकों को बिना तुर्या अवस्था आए हो अपने आपको समाधिस्थ हो नाने का भ्रम हो जाता है इसलिए प्रत्येक साधक को इन भ्रान्तियों को अपने मन में स्थान नही बनाने देना चाहिए और असली तुर्यावस्था को भी बार-बार अजमाना चाहिए, और जो मैंने उस तुर्यावस्था के लिए लिखा है कि वह सत्य भी है या नहीं। इसको परख करनी चाहिए। जब हर तरह से आप आश्वस्त हो जायें। केवल तब ही आप चाहें तो For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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