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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योग और साधना. टीचर" की हैसियत से हैं बता रहे हैं वह उदाहरण देते हैं कि आदमी एक मिनट में इतने स्वाँस लेता हैं तो वह सौ साल जीता है। कछुआ एक मिनट में इतने कम स्वाँस लेता है कि ५०० साल जीता है लेकिन यदि इस बात को हम सिद्धान्त रूप में सच माने तो यह वक्तव्य एक कदम भी आगे नहीं चल सकता क्योंकि इस दुनियां में ऐसे भी जीव होते हैं जो ज्यादा से ज्यादा एक दो दिन के ही मेहमान होते हैं, इतने अल्प समय में ही वे अपनी बचपन, जवानी, बुढापां तीनों स्थितियों से गुजर जाते हैं। इतने से ही समय में वे अपनी सन्तति भी पैदा कर जाते हैं । अगर उपरोक्त सिद्धान्त सच होता तो उन्हें अपनी साँसें इतनी जल्दी लेनी पड़ती कि वायु के तीन आवागमन के कारण इतनी गर्मी पैदा होती कि उनमें आगही लग जाती, इस प्रकार की न जाने कितनी-कितनी बातें हमें समाधि अवस्था से भ्रमित करती रहती हैं। मस्तिष्क के बल पर यदि उसका अनुभव किया जा सकता होता तो यह बात कोई कठिन नहीं थी, वह तो कठिन ही इस कारण से है कि बात इसके विपरीत है। जितना-जितना हमारा मस्तिष्क निष्क्रिय होता जाता है उतना-उतना हम उस अनुभव के नजदीक अपने आपको पाते हैं । आप कह सकते हैं कि बिना मस्तिष्क के तो हम बेहोशी में होते हैं । इसलिये इस बात को जरा गौर से समझें । - बेहोशी हम उस अवस्था को कह सकते हैं जिस अवस्था में हमारा मस्तिष्क मन और हमारा शरीर तीनों ही निष्क्रिय हो जाते है। जिसके कारण बेहोशी टूटने के बाद में हमें उस गुजरे समय के विषय में कुछ भी बात हमारी याददास्त में नहीं आती हैं। जबकि कुण्डलिनी जागरण की अवस्था में जो स्थिति हमारे शरीर की, :मन को या मस्तिष्क की बनती है वह बेहोशी से तो बिल्कुल अलग है क्योंकि उसमें हमारा मन बिल्कुल ठीक अवस्था में चैतन्य रहता है। जैसाकि हमारी जागृति को अवस्था में रहता है, लेकिन इस अवस्था को हम जागृत अवस्था भी नहीं कह सकले क्योंकि हमारा शरीर बिल्कुल मृत प्राय रहता है। शरीर के मृत प्राय रहने के कारण, ऊपर से यह सुषुप्ती की अवस्था लगती है। लेकिन यह सुषुप्ती की भी अवस्था नहीं है क्योंकि सोते हुए ‘जो जो अनुभवः स्वप्नों के द्वारा होते हैं। उनमें हम मौजूद तो होते हैं लेकिन केवल दृश्य रूप में, जिनको हम. नींद से उठने के बाद याद करते हैं तो अपने मन को उन स्वप्नों में For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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