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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० योग और साधना रहना चाहिए जिसकी वजह से हम बिना वजह परेशान नहीं हों । कुण्डलिनी क्षेत्र के ठीक ऊपर जो पहला चक्र है । उसे हम मूलाधार चक्र कहते हैं, कुण्डलिनी की शक्ति सबसे पहले इसके ही सम्पर्क में आती है । इसके द्वारा काम वासना के लिए काम केन्द्र को जिस विशेष शक्ति की हमें आवश्यकता होती है वह हमें मिलती है उससे और ऊपर दूसरा चक्र पेडू के मध्य में होता है जो कि हमारे खाने को पचाने के लिए, मल को आँतों से आगे बढ़ाने के लिए तथा अपान वायु को बाहर निकालने के लिए जिस विशेष प्रकार की ताकत की जरूरत होती है इस दूसरे स्वाधिष्ठान नाम के चक्र द्वारा हमें प्राप्त होती है। तीसरा चक्र उससे और ऊपर हमारे पेट के मध्य हमारी नाभि के अन्दर होता है जिसका कार्य होता है हमारे स्वांस को नियमित बिना किसी बाधा के चलाये रखना, इस क्रिया के लिये जितनी शक्ति हमें चाहिए उसकी पूर्ति हमें इस मणिपूरक चक्र के द्वारा होती हैं । चौथा चक्र जिसे हम अनाहत चक्र कहते हैं, वह हमारे हृदय प्रदेश के पास होता हैं जिसके द्वारा हमें हृदय के लिए चाही गयी शक्ति की आपूर्ति होती है । पाँचवा विशुद्ध चक्र हमारे कंठ में होता है जो हमारी वाणी के लिये शक्ति की आपूर्ति करता है। 'छठया चक्र जिसे हम आज्ञा चक्र कहते हैं जो कि इन सभी पर निगाह रखता है तथा इमरजन्सी के दौरान अपने स्वयं के यहाँ से सभी को अतिरिक्त शक्ति प्रदान कैरता है इसके अलावा वह खासतौर से आँख, कान, नाक आदि को सक्रिय बनाये 'रखने के लिये कुण्डलिनी से मिली शक्ति को उपयोग में लेने के लिये भेजता रहता हैं। इससे और ऊपर मस्तिष्क में सातवाँ चक्र है जो कि "आज्ञा चक्र" से भी ज्यादा शक्तिशाली हैं, इसे सहस्त्रार चक्र कहते हैं यह कुण्डलिनी से मिली शक्ति की सम्पूर्ण मस्तिष्क के संचालन में लगाता है इसकी शक्ति के द्वारा ही सम्पूर्ण शरीर का नरवस सिस्टंम संचालित होता है तथा अपने स्वयं मस्तिष्क के लिए भी उपयोग में व्यय हुयी शक्ति की भी इसी चक्र के द्वारा पूर्ति हो जाती है। कुण्डलिनी शक्ति को जब हम इड़ा पिघला के द्वारा स्थूल साधना में (प्राणायमि को अवस्था में) ऊपर ले जाते हैं तब स्वतः ही हमें इन सभी चक्रौं के शरीर में स्थान की जानकारी मिल जाती है। प्राणायाम के द्वारा जब हम अपनी स्वांस को अन्दर या बाहर से For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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