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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इडा पिघला और सुषमा नाड़ियों का अस्तित्व तथा प्रभाव १७७ याम का.स्पष्ट उद्देश्य है। यह एक प्रकार से मस्तिष्क को स्थूल रूप से चैतन्य करने का रामबाण साधन है। जब पहले स्थूल रूप से हमारे मस्तिष्क को इस शक्ति को झेलने की क्षमता आ जाती है तब. बाद में हम सूक्ष्म रूप में सुषमणा के द्वारा उस शक्ति को ले जाने की कोशिश करते हैं जिस किया को हम कुण्डलिनी जागरण की क्रिया कहते हैं जब स्थूल और सूक्ष्म दोनों प्रकार से मस्तिष्क इस शक्ति के प्रवाह को झेल लेता है तब ही हमारा मस्तिष्क- पूर्ण रूपेण चैतन्य हुआ जानना चाहिए इससे पहले तो भ्रम ही होगा। हम मैडीकल साइंस के द्वारा यह भली-भांति जानते हैं कि मनुष्य अपने मस्तिष्क की सम्पूर्ण क्षमता में से ६% और १०% की अन्दर की परिधि में ही मूर्ख से लेकर बुद्धिमान तक सभी मनुष्य आ जाते हैं । बाकी बचे हुए मस्तिष्क के ६०% कोष निष्क्रिय या सुप्त अवस्था में पड़े रहते हैं । हम यह भी जानते हैं कि इन निष्क्रिय कोषों में यदि विद्युत प्रवाहित की जावे तो इनको सक्रिय किया जा सकता है । जैसा कि पागलखानों में मरीज को बिजली के झटके लगाकर किया जाता है । लेकिन मस्तिष्क को बाहर से बिजली के झटके देकर सक्रिय करना . निरापद नहीं है क्योंकि प्रत्येक मस्तिष्क की सहनशीलता अलग-अलग होती है जिसको नापने का साधन हमारे पास नहीं है । यही कारण है कि इस प्रक्रिया के द्वारा पागलखानों में मरीजों के ठीक होने का प्रतिशत बहुत ज्यादा सन्तोषजनक नहीं है । विद्युत प्रवाह के उपचार में आधे से कम रोगी ही ठीक होते हैं क्योंकि डाक्टरों को यह भी पता नहीं होता कि कौन व्यक्ति अपनी प्रकृति के हिसाब से ऋणात्मक है या धनात्मक और जब वे एक ही प्रकार से उन तमाम रोगियों में एक ही प्रकार की विद्य-त का झटका उनके मस्तिष्क को देते हैं, जबकि सही और ज्यादा अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए उन्हें प्रत्येक मरीज का अलग से ही गणित करके उनके मस्तिष्क में विद्य त प्रवाहित करनी चाहिए । जब तक ऐसा नहीं होता, पागलखानों में मरीजों की संख्या बढ़ती ही नावेगी । क्योंकि जिनको गलत वोल्टेज का या गलत तरह का विद्य त झटका दिया जाएगा उनके निष्क्रिय कोष जो सुप्त थे, अब एटी या विपरीत विद्य त प्रवाहित होने के कारण से शरीर के काम के नहीं रहते इसलिए ऐसे मरीजों के ठीक होने की सम्भावना भी क्षीण हो जाती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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