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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योग और साधना में कहीं भी पानी या चाय नाश्ते का कोई साधन नहीं हैं । रास्ता ऐसा दुर्गम है कि पहाड़ की तलहटी में गंगा बहती है और थोड़ा-थोड़ा पहाड़ को छीलकर पगडन्डी बनाई गई है। वह कहीं चार फुट चौड़ी है तो कहीं केवल एक फुट । इसी रास्ते की परेशानी के कारण ही वहाँ बहुत कम लोग जाते हैं । अगर गंगोत्री पर एक हजार व्यक्ति दर्शन को एक दिन में आते हैं तो गोमुख पर दस व्यक्ति ही मुश्किल से पहुंचते होंगे । उनमें भी संख्या ज्यादातर बाबाजीयों की ही होती है । स्त्री-बच्चों का तो वहाँ जाना बहुत ही कठिन है । खाने के बाद विधाम-गृह पर लौटते हुए हम दोनों ने चुनौती के रूप में गौमुख पर जाने का विचार स्वीकार कर लिया और निश्चय किया कि हम दोनों अकेले ही चलेंगे। सभी को यहीं छोड़ देंगे । इनको रात्रि मैं किसी प्रकार की तकलीफ न हो ऐसी व्यवस्था हम कर जावेंगे। विश्राम गृह पहुँच कर हमने सूचना दी कि हम गोमुख जा रहे हैं तथा कल दोपहर तक आ जायेंगे । बिना समय नष्ट किये एक बजे अनुमानतः या इससे थोड़ा पहले हम गौमुख के लिए चल दिये । रास्ते की जानकारी हमें जल्दी ही चल गयी । हमें बताया गया कि गौमुख से थोड़ा पहले ही एक किन्हीं लाल बाबा का आश्रम है जो आये हुए प्रत्येक यात्रो को निशुल्क खाना तथा आवास की व्यवस्था स्वयं अरने पास से करते हैं । रात्रि को ठहराते हैं ओढ़ने को कम्बल भी देते हैं। हमारे पास बाँस की पतली-पतली जिनमें नीचे नुकीले लोहे की कील ठुकीं थी हमारे हाथों में थीं जो हमें पहाड़ पर चढ़ने में तथा ढलकान पर उतरने में बड़ी मदद कर रहीं थीं । लगभग दो घण्टे की लगातार चढ़ाई के बाद हम एक ग्वुले से स्थान पर आकर ऐसे हांफते हये गिर से गये कि कहाँ आ फंसे । दस मिनट तक विश्राम लेने के पश्चात ही हम आपस में कुछ बोल सके, पाराशर जी बोले, "अभी तो हम बहुत थोड़ा सा चलकर ही आये हैं लेकिन ऐसा लगता है कि अब अगर वापिस भी चलेंगे तो लौटने की भी सामर्थ्य अब नहीं है ।" उन्होंने जो बात कहीं थीं, वह विल्कुल सही ही कही थी क्योंकि हम उस समय लगभग समुद्र से १२००० फीट की ऊँचाई पर थे, जिसके कारण हम आक्सीजन की बहुत कमी अनुभव कर रहे थे । अपनी सामान्य बात-चीत में भी हमारी सांस फूल रहीं थीं लेकिन पारस For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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