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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इडा पिघला और सुषमणा नाड़ियों का अस्तित्व तथा प्रभाव कि यह सुषमणा नाड़ी मेरूदण्ड के अन्दर से ऊपर की ओर गर्दन के पिछले हिस्से से होती हुयी मस्तिष्क मैं चढ़ती है लेकिन वहाँ जाकर इसका दिखाई पड़ना कठिन हो जाता है क्योंकि मस्तिष्क में चढ़कर यह अरबों-खरबों रेशों में विभाजित होकर मस्तिष्क के प्रत्येक कोष से अपना सम्पर्क बनाती है. चाहे वह कोष जागृत हो अथवा सुषुप्त । इसके पश्चात यह फिर एकत्र होकर हमारे माथे पर सामने की ओर से आकर दोनों भवों की बीच इड़ा पिघला नाड़ियों से इस युक्त त्रिवेणी पर आकर मिल जाती है । शास्त्रों में इस सिर के ऊपरी हिस्से को सहस्त्रार या दस हजार कमलों का प्रदेश कहा है । प्रत्येक कमल में सैकड़ों सैकड़ों कलियाँ हैं । इस स्थान को इस सहस्त्रार शब्द से इसलिए भी सम्बोधित किया है क्योंकि सुषमणा नाड़ी यहाँ मस्तिष्क के प्रत्येक कोष से सम्पर्क में ही होकर आती है तथा हम यह भी जानते हैं कि मस्तिष्क के कोषों की संख्या तो अकूत है या-अरबों-खरबों में है । जब तक कुण्डलिनी शक्ति इड़ा पिघला के द्वारा इन कोषों में पहुँचती रहती है । हमारा मस्तिष्क इस स्थूल जगत का अनुभव करता रहता है लेकिन जब कुन्डलिनी शक्ति इडा पिघला से निकल कर सुषमणा में प्रवेश करके मस्तिष्क के कोषों को प्रकाशित करती है तब हमारा मस्तिष्क सूक्ष्म जगत का अनुभव करने लगता है। हमारा मस्तिष्क इस प्रकार से दो तरह का है जब तक हमने कुन्डलिनी को जागृत नहीं किया है यानि यह अपनी साधारण अवस्था में है तब तक हमारा मस्तिष्क भी स्थल या जड़ ही है लेकिन जैसे ही यह मस्तिष्क सुषमणा के द्वारा प्रकाशित हो जाता है तब यही चैतन्य होकर सूक्ष्म के अनुभव करने लगता है। इसलिए जब कोई साधक इडा पिघला में रहते हुए भी थोड़ी शक्ति सुषमणा में हाश-पूर्वक भेजने की क्षमता जागृप्त कर लेता है तब वह सिद्ध कहलाता है। इस प्रकार की अवस्था में पहुंचने के पश्चात ऐसा सिद्ध आपके सामने बैठे-बैठे ही अपना ध्यान अपनी विषय वस्तु पर केन्द्रित करके भविष्य में होने वाली घटनाओं को आपके सामने उजागर कर सकता है । जब उसमें इतनी सामर्थ्य आ जाती है । तब वह इस दुनियाँ में साधारण होकर नहीं रह जाता है। वह अपने भाप असाधारण हो ही जाता है । अब मैं इस कुन्डलिनी शक्ति को प्रयोगात्मक रूप से जागृत करने के लिए For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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