SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar इडा पिंचला और सुषमणा नाड़ियों का अस्तित्व तथा प्रभाव १५१ डाक्टर इसी अस्पताल की किसी नर्स के साथ रंगरेलियां मना रहा था । हारकोस से नहीं रहा गया। उसने यह बात भी, सभी के सामने उस डाक्टर से कह दी । डाक्टर का तो चेहरा जैसे एकदम से सफेद पड़ गया लेकिन डाक्टर अपने आपको सभाल कर बोला, "लगता है कल वह नर्स ठीक ही कह रही थी, यह पागल ही हो गया है।" डाक्टर ने कुछ और भी भलाबुरा पीटर से कहा और शीघ्र ही वह उसके पलंग के पास से खिसक लिया । डाक्टर के जाने के बाद उसने सोचा, "मैंने उसको ऐसा क्यों कह दिया इन बेचारों ने तो मिलकर मेरी जान बचाई है । कितनी मेहनत इन्होंने की होगी उस समय, जब मैं बेहोश था । यदि उनको मेरे इस व्यवहार का मेरे होश में आने के पहले ही पता चल गया होता कि मैं उनके साथ होश में आने के पश्चात इस तरह का दुर्व्यवहार करूंगा तो शायद मेरे जीवन की उन कठिनाईयों में ये मेरी परवाह ही नहीं करते । इस बात को सोचकर पीटर ने निश्चय किया कि अब कैसा भी दृश्य उसके समक्ष आयेगा तो भी वह उसका जिक्र किसी से भी और किसी भी हालत में नहीं करेगा। इसके अलावा अब तो पीटर स्वयं भी इन अजनबी दृश्यों से भयभीत होने लगा था। आखिर मुझे क्या हो गया है, कि मुझे जागते हुये भी ये सपने से दिखाई देने लग जाते हैं। जब भी किसी को कोई व्यक्तिगत वस्तु अथवा किसी का हाथ उसके हाथ में आ जाता, बस तभी से उस वस्तु से सम्बन्धित व्यक्ति के सारे के सारे दृश्य उसके मस्तिष्क में धूमने लगते और वह उन्हीं में खोकर रह जाता। कई बार तो उसे अपने पागल होने का शक भी होता कि हो न हो डाक्टर ठीक ही कहता होगा, मैं पागल ही तो हो गया हूँ। पागलपन में भी तो आदमी स्वयं के ख्यालों में ही तो खोया रहता है और न जाने क्या अनाप-शनाप बकता रहता है इतना सब कुछ सोच ने के बाबजूद भी वह अपनी इस नई आदत पर काबू नहीं रख सका जिसके कारण से उसने उस बार्ड के डाक्टरों तथा नसों को व्यक्तिगत रूप से अपना शत्रु बना लिया था। ... खर जैसे तैसे उन अस्पताल वालों के कुछ दिन और गुजार दिये । लेकिन जब उसकी हरकतों से सभी इतने परेशान हो गये कि उसको वार्ड में सहन करना उनके लिये बिलकुल ही कठिन हो गया तब उन्होंने पीटर हरकोस की एक बार ढंग से ड्रेसिंग करके अस्पताल के बाहर फुटपाथ पर डाल दिया । For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy