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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar कुण्डलिनी का स्थान १३७ गाले झूलों में या रहट जिनमें ऊपर से नीचे की तरफ और नीचे से ऊपर की तरफ चक्कर लगाते हैं, अवश्य ही बैठे होंगे । बहुत से लोगों को, औरतों को, बच्चों को उनमें बैठने में डर भी लगता है। बहुतों को तो मैंने आँसुओं से रोते हुये भी देखा है । बहुतों का तो उस समय अपने सामान्य बन्धनों पर से संयम तक हट जाता है। कभी सोचा आपने ऐसा क्यों होता है ? आखिर ऐसा क्या हो जाता है ? झूले में बैठे-बैठे की हमारी सारी बुद्धिमानी, हमारी सारी की सारी शारीरिक ताकत, हमारा अहम्, हमारा तेज, हमारी विद्या का उस समय कहीं कुछ पता नहीं चलता और जिन-जिन बातों के द्वारा हमारी अपनी पहचान होती है। हम सब भूल जाते हैं । अगर हमें कुछ समय का अनुभव जो हमारी याददास्त में रहता है वह केवल यही रहता है कि बहुत तेज गुलगुली हमें अपने शरीर में महसूस होती है और वह इतनी तेज होती है कि वह हमको अपनी सामान्य अवस्था में भी नहीं रहने देती है । ध्यान रहे वहाँ शरीर बिल्कुल ठीक रहता है उसके लिये कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती । अगर कोई बाधा उत्पन्न होती है तो वह हमारे स्वयं के लिये, न कि शरीर के लिए। इसलिए उस समय हमें शरीर का ध्यान नहीं आता बल्कि ध्यान आता है हमें अपने स्वयं के अस्तित्व को असामान्यता के प्रभाव का जो तेज गुलगुली या सन्नाहट के रूप में हमारे सामने उपस्थित होता है। अब जरा गौर करें वह झूला हमारे अस्तित्व को किस प्रकार बीमार कर देता है ? वैज्ञानिक रूप से तो नहीं लेकिन आध्यात्मिक रूप से हम इस स्थूल शरीर के अलावा सूक्ष्म शरीर मानते हैं और जो लोग उसके अनुभवों को प्राप्त कर लेते हैं । वे इसे हकीकत भी मानते हैं ये दोनों शरीर हमारी देह में सामंजस्य बनाकर एक दूसरे में समाये रहते हैं । जब तक हमारा मस्तिष्क बिल्कुल स्वस्थ्य अवस्था में रहता है तब तक इन दोनों में कोई प्रतिरोध नहीं होता। लेकिन जैसे ही किसी बाहरी या आन्तरिक कारणों से मस्तिष्क की क्षमता चुक जाती है। सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर को छोड़कर बाहर निकलने लगता है। क्योंकि मस्तिष्क के फेल हो जाने के पश्चात् हमारे मन का सामंजस्य जो कि मस्तिष्क के साथ था उसमें बिगडान आ जाता है। यही कारण है कि मन पर आधारित सूक्ष्म शरीर में और मस्तिष्क पर आधारित स्थूल शरीर के बीच की सन्धि में दरार पड़ने लगती है। झूले पर झूलते समय जब हम ऊपर से नीचे की ओर आते हैं एकदम गिरने के समान । तब इस अप्रत्याशित घटना के कारण मस्तिष्क अपना सन्तुलन खो ही तो For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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