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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ योग और साधना थी। बहुत आश्चर्य भी हो रहा था कि मेरे बिना जपे यह सारा का सारा मामला . क्या है ? कौन बैठा है भीतर ? कहां से यह ज्वाला जल रही है ? शरीर के स्तर पर मैं महसूस कर रहा हूं तो फिर क्या उस दूसरे किनारे पर वहां कोई और है। फिर कभी आश्चर्य यह भी होता है कि मैं होश में तो हूं ? कहीं मैं सोया हुआ तो नहीं हूं ? कई प्रकार से अपनी अवस्था का निरीक्षण कर रहा था, बबुआ को अपने काम में मस्त देख रहा था, बाहर से नीचे वाले दुकानदारों को आवाजें सुन रहा था, दीपक जल रहा था, बार-बार में हवन कुण्ड में घी और धूप भी डाल रहा था फिर मैं सुषुप्त अवस्था में तो हो ही नहीं सकता था, भूख लग रही थी, माथे में जलन भी थी। इन सबके रहते हुए मैं मैं तो जागृत अवस्था में हो था, पूर्ण रूप से चेतन्यावस्था में हो था, बल्कि इतना चेतन्य था कि अचेतन के कार्य कलापों को भी महसूस कर रहा था जो कि राम-नाम के साथ अहिनिश मेरे अन्दर अचेतन मन में चल रहा था। जैसे ही मेरी बुद्धि ने इतना जाना कि अचेतन के रूप में दूसरी कोई शक्ति जो मेरे अन्दर विराजमान है, तथा ये मेरी चेतनता से अलग है तथा मेरे अन्तस् में विराजमान है, उसे मैं अब भली भाँति जान रहा हूं जैसे मैं एक तरफ चेतन रूप से राम-नाम जपते हुए कर्म में लगे हुये दिख रहा हूं तो क्या दूसरी तरफ वह अचेतन किसी दूसरे कर्म में नहीं लग सकती है । वैसे ही अपने अन्दर से ही आवाज आयो, "हां, क्यों नहीं, अवश्य ही इसका उपयोग किया जा सकता है ।" आज भी मैं नहीं जानता कि उस समय वह मेरा दुर्भाग्य था या सौभाग्य ! मेरे विचार किसी की सेवा भाव में थे, वैराग्य में थे, अथवा पूर्ण रूप से राग में लिप्त थे, इसकी व्याख्या मैं स्वयं नहीं करना चाह रहा हूँ या नहीं कर पा रहा हूँ । उस "हां" की आवाज के साथ ही मैं अपने आप को या अपने विचारों को टटोलने लगा तो सबसे प्रथम बबुआ की ही सेवा भक्ति मेरे सामने आयी । शायद उसका कारण यही रहा होगा कि अगर वह न होता तो मैं शायद इस स्थिति को प्राप्त नहीं होता । इसलिये बिना किसी विशेष विचार को लिये पहला प्रश्न जो बाद में आखिरी भी हुआ, पूछा...... ........... । प्रश्न को बताने से पहले दो तीन बातें बबुआ के बारे में मैं आपको बता रहा हूँ जिससे आपको इस प्रश्न को समझने में कठिनाई न हो क्योंकि उस समय भी बबुआ के बारे में इतनी जानकारी तो मुझे भी अवश्य थी, पहली यह कि बबुआ पान की दुकान चलाता है। दूसरे घर में लम्बा परिवार For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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