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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ योग और साधना हुई वेहोशी की ही अवस्था थी और चूकि मैं आध्यात्मिक सिद्धांतों और उसकी कठिनताओं से शाब्दिक रूप से परिचित था इसलिये भी प्रेक्टिकली जब मुझे वह कठिनता मेरे समक्ष आयी तो उस समय मुझे अपने आपकी होश पूर्वक बनाये रखने में खुशी ही हुई थी जिसके कारण उस समय मुझमें मेरा उत्साह शायद, वल्लियों उछल रहा था । शारीरिक कमजोरी होने के बावजूद भी यही कारण था कि उस दिन शाम को गंगा स्नान भारत साधु समाज के सामने न करके धीरे-धीरे लक्ष्मण झूला के पार जाकर कोई तीन किलोमीटर पैदल चलकर किया। लक्ष्मण झूला तक पहुँचते-पहुँचते कुछ बातें मेरे मन में नयी स्थिर हो गयी पहली बात तो यह कि मैंने अपने मन में राम नाम को सदैव जपते पाया, हालाकि खेचुरी की मुद्रा में मेरी जीभ अब भी उसी तरह थी, इसलिए भूल की तो गुंजाइश ही नहीं थी कि मैं स्वयं नाम को जप रहा था। दूसरी वात मेरे कमरे के पास जो साधारण सी आवाज में बातचीतें या जो आवाजें हो रही थी वो मुझे बड़ी कोलाहल के रूप में लगने लगी थी उनके द्वार बार-बार मुझे व्यवधान सा लगने लगा था लेकिन उनका कोई उपचार मेरे पास नहीं था । फिर भी मेरी यह इच्छा अवश्य बलवती हो रही थी कि किसी न किसी तरह से इस कोलाहल से छुटकारा मुझे अवश्य मिलना ही चाहिये । वहाँ गंगा के किनारे पगडन्डी वाले रास्ते पर धीरे-धीरे चलते हए बड़ा भारी सुकून मुझे मिल रहा था। उसके सामने मेरी शारीरिक थकान और कमजोरी मुझे गौण लग रही थी। कहने का मतलब है, साधना के अथवा तपश्चर्या के दूसरे दिन तीन बातों का एहसास मुझे हुआ था, पहला होश जागृत रखने की क्षमता में वृद्धि होना, दूसरी थी अजपा की स्थिति और तीसरी थी- मानसिक या वैचारिक शोर से मुक्ति की ओर कदम इसी कारण की वजह से मुझे अब बाहर का शोर खलने लगा था, क्योंकि जब तक हम अपने ही शोर से भरे हैं तब तक खला बाहर का शोर हमें कहा से सुनाई देगा ! बाहर तो का शोर तब ही हमें कष्ट पूर्ण लगता है जब हम स्वयं अन्दर से शान्त होते हैं । दूसरा दिन बड़ा लम्बा हो गया था, बीतने में ही नहीं आ रहा था। कई बार मुझे ऐसे भी विचार आये थे कि क्या मामला है ? विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि दो दिन इतने लम्बे हो सकते हैं। खैर जैसे तैसे रात्रि आयी। For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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