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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अध्याय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधन से सिद्धियों की प्राप्ति मुझे एक ग्वाले की कहानी याद आ रही है जिसके मन में सदाँ एक ही विचार उठा करता था कि मैंने इस दुनियाँ में जन्म क्या केवल इसलिये ही लिया है, कि मैं रोजाना सुबह उठकर गायों को जंगल में ले जाँऊ और शाम को घर वापिस पहुँच कर रोटी खाकर सो जाँऊ । सुबह उठकर फिर पिछले दिन को ही तरह का काम; न कहीं जाना और न कहीं आना । यह भी कोई अर्थ हुआ इस जिन्दगी का ? इन तथ्य पूर्ण बातों के कारण वह अपने मन में बड़ा ही बेचैन रहा करता था । जितन- जितना वह इन प्रश्नों का उत्तर खोजता उतना उतना ही उसका मन बेचैनी में डूबता जाता था, दिन ब दिन वह विक्षिप्त सा होता जा रहा था । उसे कोई राह ही नहीं सूझ रही थी कि वह इस भूल भुलैया से किस प्रकार से पार हो । एक दिन वह इसी तरह जानवरों को लेकर इधर से उधर निरुउद्देश्य सा घूम रहा था, तभी वहाँ उसे एक गेरुआ वस्त्र धारी एक बाबाजी गुजरता हुआ मिला, उस ग्वाले ने उस बाबाजी को रोककर बड़ी नम्रता पूर्वक कहा, "आप तो भगवान के आदमी है मुझे भी उससे मिलने का कोई रास्ता बताओ, मैं बहुत परेशान हूँ," इतना कहकर वह ग्वाला उस बाबजी के पैरों में गिर गया । वह अनपढ़ तो था ही साथ ही भोला भी था । बाबाजी ने देखा कि परमात्मा को प्राप्त करने के लिये इसमें लौ तो खूब जल रही है। लेकिन जब मुझे ही आज तक कहीं नहीं मिला तो उसे क्या बताऊँ ? तभी उस बाबाजी को निगाह, ग्वाले के जानवरों में उसी दिन की ब्याही गाय पर पड़ी जिसका बछड़ा दूध पीने के लिये खड़े होने की कोशिश में बार-बार गिर रहा था, बाबा बोला "अच्छा उठ मैं रास्ता तो बता दूँगा परन्तु मुझे गुरू दक्षिणा में क्या देगा" ? इसको सुनकर ग्वाले को तो मानो मन की मुराद ही मिल गयी तुरन्त ही बोला - "आप आज्ञा करें मैं आपको क्या दू" । For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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