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य. विचरावे मारी मारिरे ॥ दियेदंड ए ९४३ मदन] रा त्यरे ॥ पांमे पिडा पाशिव
उभात्यरे ॥ ३१॥ दनिच्प्राप पापें पा विजन रे ॥ पडेले ते सार मेयादन रे ॥ सार मे याद न नुं जे दुःखरे ॥ ते नो क युं जाये न हि मुखरे ॥ ३२ ॥ जे हपायें पडे एहमांइरे ॥ तेसो भव्लजोकउंभा इरे ॥
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