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श्री व्यवहारसूत्रम्
अष्टम
उद्देशकः १३७९ (B)
कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पव्वामेव ओग्गहं अणुन्नवेत्ता तओ पच्छा ओगिण्हित्तए ॥११॥ ___ अह पुण एवं जाणेजा-इह खलु निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा नो सुलभे पाडिहारिए सेज्जासंथारए त्ति कटु एवं णं कप्पइ पुव्वामेव ओग्गहं ओगिण्हित्ता तओ पच्छा अणुन्नवेत्तए।
"मा दुहओ अजो! बिइयं" ति वइ अणुलोमेणं अणुलोमेयव्वे सिया ॥१२॥
"नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा" इत्यादि, "जाव अणुलोमेणं अणुलोमेयव्वे सिया"॥ ३४९७॥
इति अस्य सूत्रस्य सम्बन्धमाहउग्गहसमणुण्णासु, सेज्जा-संथारएसु य तहेव । अणुवत्तंतेसु भवे, पंते अणुलोमवति सुत्तं ॥ ३४९८ ॥
XX.
सूत्र ८-१२
गाथा ३४९५-३४९८ द्वितीयावग्रहानुज्ञापनाविधिः
X.
१३७९ (B)
१. मा वहउ- आ. प्र. ब्यावर, श्युब्रींग ।।
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