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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से कप्पइ चाउलोदणे पडिगाहित्तए। तत्थ से पुव्वागमणेणं दो वि पुव्वाउत्ताई, कप्पड़ श्री से दोवि पडिगाहित्तए । तत्थ से पुव्वागमणेणं दो वि पच्छाउत्ताइं नो से कप्पइ दो वि व्यवहारसूत्रम् पडिगाहित्तए। जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते से कप्पइ पडिगाहित्तए । जे से तत्थ षष्ठ पुव्वागमणेणं पच्छाउत्ते नो से कप्पइ पडिगाहित्तए ॥१॥ उद्देशकः “भिक्खू य इच्छेज्जा नायविहिं एत्तए'' इत्यादि । अथास्य सूत्रस्य कः सम्बन्धः? इत्यत १०४८ (A) आह छेयण-दाहनिमित्तं, मंडलिडक्के व दीहगेलन्ने । पाउग्गोसहहेउं, नार्यविहिं सुत्तसंबंधो ॥२४२७॥ सर्पण दष्टः सर्पदंशस्थानस्य छेदननिमित्तं वा दाहनिमित्तं वा ज्ञातविधिं गन्तुमिच्छति, | 20 अथवा मण्डलिसर्पण दष्टस्ततो दीर्घं ग्लानत्वं जातं तस्मिन् सति प्रायोग्यौषधहेतोतिविधौ ० गमनं भवति, ततस्तत्प्रतिपादनार्थमेष सूत्रारम्भ इति सूत्रसम्बन्धः ॥ २४२७ ।। १. दाहसमुत्थं P ॥ २. णायविधी-ला.॥ सूत्र १ गाथा २४२७-२४३१ ज्ञातविधि गमनसामाचारी १०४८ (A) For Private And Personal Use Only
SR No.020937
Book TitleVyavahar Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
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