________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
इसी दृष्टि से इन प्रत्याहार-सूत्रों का दुमरा नाम 'शिव-मूत्र' अथवा 'माहेश्वर-मूत्र' भी प्रसिद्ध हो गया । द्रष्टव्य
नृत्यावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपंचवारम् । उद्धर्तु कामः सनकादिकामान् एतद् विमर्श शिवसूत्रजालम् ।।
(नन्दिकेश्वरकृत काशिका, प्रथम श्लोक)
परमा लघु-वैयाकरण-सिद्धान्त-मंजूषा-परम उद्भट विद्वान् श्री नागेश भट्ट ने पाणिनीय-व्याकरण-शास्त्र के विविध सिद्धान्तों, मान्यताओं एवं तत्त्वों के गम्भीर दार्शनिक विवेचन, विश्लेषण एवं अष्टाध्यायी के सूत्रों की व्याख्या की दृष्टि से अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना द्वारा संस्कृत-व्याकरण के वाङमय को समृद्ध बनाया। लघु-शब्देन्दु-शेखर, परिभाषेन्दु-शेखर, वैयाकरण-सिद्धान्त-मंजुषा, स्फोटवाद, महाभाष्यप्रत्याख्यान -संग्रह जैसे विशिष्ट ग्रन्थ इनकी असाधारण विद्वत्ता के उत्कृष्ट प्रमाण हैं । इनके अतिरिक्त महाभाष्य की कैयट-कृत प्रदीप टीका की विवेचना के रूप में नागेश ने अपनी उद्द्योत टीका प्रस्तुत की, जिसमें 'प्रदीप' की व्याख्या के साथ साथ महाभाष्य के अनेक रहस्यपूर्ण स्थलों की अच्छी व्याख्या उपलब्ध हो जाती है।
वैयाकरण-सिद्धान्त-मञ्जूषा व्याकरण दर्शन का एक परम प्रौढ़ ग्रन्थ कहा जा सकता है, जो केवल हस्तलेखों के रूप में कहीं २ उपलब्ध है। मञ्जूषा का यह बृहत् तथा प्रारम्भिक पाठ माना जाता है । नागेश ने अपने इस बृहत् ग्रन्थ को दो संक्षिप्त रूपों में प्रस्तुत किया-एक लघु-मंजूषा तथा दूसरी परम-लघु-मंजूषा। संभवतः वैयाकरणसिद्धान्त-मंजूषा की रचना नागेश ने अपनी 'उद्योत' टीका की रचना से पूर्व कर ली थी। द्र०-तत्र तु न शक्तिर् इति मंजूषायाम् प्रतिपादितम् । (महा० उद्द्योत टीका, भा० १, पृ० ४६)
[आठ प्रकार के 'स्फोट']
तत्र वर्णपदवाक्यभेदेन स्फोटस्त्रिधा। तत्रापि जातिव्यक्तिभेदेन पुन: षोढा । अखण्डपदस्फोटोऽखण्डवाक्यस्फोटश्चेति
सङ्कलनया अष्टौ स्फोटाः । वर्ण, पद तथा वाक्य (इन) भेदों के कारण 'स्फोट' (अर्थ-बोधक शब्द) तीन प्रकार का होता है। उनमें भी 'जाति' तथा 'व्यक्ति' की भिन्नता के कारण पुनः ‘स्फोट' छः प्रकार का होता है । (इसके अतिरिक्त) 'अखण्ड-पदस्फोट' तथा 'अखण्ड-वाक्य-स्फोट' इनके योग से 'स्फोट' आठ प्रकार का होता है।
For Private and Personal Use Only