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उन्तालीस
हिन्दी के माध्यम द्वारा अध्ययन करने वाले विद्वानों तथा छात्रों के लिये यथासम्भव सुगम एवं हृदयग्राही बनाया गया है। अज्ञानतावश अथवा प्रेस की असावधानी के कारण कुछ न्यूनतायें तथा अशुद्धियाँ अवश्य मिलेंगी। विद्ववृन्द उनका परिमार्जन करके उदारता पूर्वक मुझे अवश्यक मुझे क्षमा करेंगे।
गच्छतः स्खलनं क्वापि भवत्येवाप्रमादतः । हसन्ति दुर्जनास्तत्र समादधति सज्जनाः ।।
कुरुक्षेत्र
विद्वानों का परम विनीत
कपिलदेव
१०-१-७५
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