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वैयाकरण- सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
इसीलिये शब्द चार प्रकार का होता है। जैसे -'रूढ़', 'योगरूढ़', 'यौगिक' तथा 'यौगिकरूढ़' | "पद के अवयवों के अर्थ की अपेक्षा किये बिना केवल समुदाय की ( वाचकता) 'शक्ति' से ही अर्थ का ज्ञान कराना 'रूढ़िता' है ।" जैसे --' रथन्तरम्' इत्यादि प्रयोगों में । " अवयव के अर्थ से संयुक्त हुई समुदाय की 'शक्ति' से अर्थ का ज्ञान कराना 'योगरूढ़िता है ।" (जैसे) 'पङ्कज' इत्यादि (प्रयोगों) में । 'अवयवशक्ति से ही अर्थ का बोध कराना 'यौगिकता' है ।" (जैसे) 'पाचिका', 'पाठिका' इत्यादि (प्रयोगों) में । " अवयवशक्ति तथा समुदायशक्ति दोनों से ( भिन्न भिन्न प्रयोगों में ) अर्थ का ज्ञान कराना 'यौगिकरूढ़िता ' है" । 'माँड पीने वाला' (इस) अर्थ का तथा घर - ( के एक भाग) विशेष अर्थ का वाचक ' मण्डप' शब्द ( ' यौगिकरूढ़ि' का) उदाहरण है । यह ( इन सबका ) विवेचन है ।
ननु रथन्तर के प्रयोग तथा उनके शब्द के विग्रह वाक्य है इसलिये, 'रथन्तर'
होना चाहिये ।
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"न्यायात् : - यहाँ यह प्रश्न किया गया है कि जब 'वृत्ति' विग्रह वाक्यों को समान अर्थ वाला माना जाता है तो, 'रथन्तर' 'रथेन तरति' (रथ + तृ + खच्) से 'रथिक' अर्थ का बोध होता शब्द से भी 'सामविशेष' के साथ साथ 'रथिक' अर्थ का भी बोध
इस प्रश्न का उत्तर यह है कि एक न्याय है " रूढ़िर् योगार्थम् अपहरति " अर्थात् 'रूढ़ि' ( परम्परा अथवा प्रसिद्धि ) शब्द के 'यौगिक' अर्थ को दूर कर देती है । इस न्याय के अनुसार, 'रथन्तर' शब्द की केवल 'साम' - विशेष के अर्थ में प्रसिद्धि है । इसलिये, प्रसिद्धि के कारण 'रथन्तर' शब्द का 'यौगिक', अर्थ बाधित हो जायेगा । इस तरह प्रसिद्धि के द्वारा 'यौगिक' अर्थ, अर्थात् धातु तथा प्रत्यय रूप अवयवों से बोध्य अर्थ, के दूर कर दिये जाने के कारण ही इस शब्द को ऊपर ( द्र० पृ० ४०४ - ६), 'एकार्थी - भाव' के एक भेद, ('जहत्स्वार्था') के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया ।
ननु विशिष्ट "पद्मे शक्ति स्वीकारात् : - यहाँ यह प्रश्न किया गया है कि जब, 'व्यपेक्षा' सामर्थ्य के सिद्धान्त को न मान कर 'एकार्थीभाव' - सामर्थ्य के सिद्धान्त को ही अपनाया जाता है, जिसके अनुसार विशिष्ट समुदाय ही विशिष्ट अर्थ का वाचक है, तो 'पङ्कज' शब्द से ( 'पङ्क + जन् + ड') 'पङ्क में उत्पन्न होने वाला ' इस अवयवार्थ की प्रतीति नहीं होनी चाहिये । 'पङ्कज' इस पूरे समुदाय की शक्ति से सीधे पुष्प विशेष अर्थ की प्रतीति ठीक उसी प्रकार हो जानी चाहिये जिस प्रकार 'कमल' कहने से, उसके अवयवार्थ का ज्ञान हुए बिना ही, प्रभिप्रेत पुष्प - विशेष अर्थ का ज्ञान हो जाता है । पर ऐसा नहीं होता । 'पङ्कज' शब्द के प्रयोग करने पर अवयवार्थ का ज्ञान होता ही है । इसलिये ग्रवयव में ही अर्थाभिधान की 'शक्ति' मानी जानी चाहिये - विशिष्ट समुदाय में नहीं । वस्तुतः यह प्रश्न 'पङ्कज' शब्द को 'जहत्स्वार्थी वृत्ति का उदाहरण मान कर किया गया है ।
इस प्रश्न का उत्तर यह दिया गया कि 'एकार्थीभाव' सामर्थ्य मानने पर भी यहाँ, शब्दशक्ति के स्वभाव के विलक्षण होने के कारण, श्रवयवार्थ सहित जो समुदायार्थ, अर्थात् पद्मया कमल, उस को 'पङ्कज' शब्द कहा करता है । अपने अवयवार्थ का
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