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[ दो प्रकार की वृत्तियाँ ]
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समासादि-वृत्त्यर्थः
१. ह० - सामभेद: ।
२. ह० – अन्त्यायाः ।
३. ह० - रथन्तरः ।
४. हु० - अनुगमा- ।
ग्रंथ समासादि-वृत्त्यर्थः । वृत्तिर् द्विधा - जहत्स्वार्थी', 'ग्रजहत्स्वार्था' च । श्रवयवार्थ - निरपेक्षत्वे सति समु दायार्थबोधकत्वं 'जहत्स्वार्थात्वम्' | अवयवार्थ-संवलितसमुदायार्थबोधकत्वम् 'प्रजहत्स्वार्थात्वम्' | 'रथन्तरम्' साम-भेद:, 'शुश्रूषा ' सेवा इति पूर्वस्या उदाहरणम् । 'राज-पुरुष:' इत्यादौ प्रन्त्या । समासादि-पंचसु विशिष्ट एव शक्तिर् न त्ववयवे । 'रथन्तरम्', 'सप्तपर्णः, 'शुश्रूपा' इत्यादाव् श्रवयवार्थानु'भवाभावात् । अत एव भाष्ये (२.१.१. पृ० ६८ ) 'व्यपेक्षा '-पक्षम् उद्भाव्य “प्रथ एतस्मन् व्यपेक्षायां सामर्थ्ये योऽसौ ' एकार्थीभाव' - कृतो विशेषः स वक्तव्यः" इत्युक्तम् । “धव- खदिरौ', 'निष्कौशाम्बिः', 'गो-रथः', 'घृत-घट:', 'गुड-धानाः ', 'केश - चूडः', 'सुवर्णालंकारः', 'द्वि- दशा:', 'सप्तपर्णः', 'द्वि-दशाः', इत्यादौ 'साहित्य' - 'क्रान्त'-'युक्त' - 'पूर्ण' - 'मिश्र '-'संघात''विकार' - 'सुच्प्रत्ययलोप' - ' वीप्सा' - ग्राद्यर्था वाचनिका वाच्याः" इति तद्भाष्याशयः ।
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अब समास आदि वृत्तियों के अर्थ के विषय में विचार करते हैं । 'वृत्ति' दो प्रकार की होती है । - 'जहत्स्वार्था' तथा 'प्रजहत्स्वार्था । (समास-युक्त पद के ) अवयवों के अर्थ की अपेक्षा न करते हुए समुदाय (समास-युक्त पूरे शब्द ) के अर्थ का बोधक होना 'जहत्स्वार्थता' (की परिभाषा ) है । तथा (समास -युक्त पद के ) अवयवभूत पदों के ( अपने-अपने अलग-अलग ) अर्थ से समन्वित होकर समुदाय (समास - युक्त पूरे पद) के अर्थ का ज्ञान कराना 'प्रजहत्स्वार्थता' (की परिभाषा) है ।
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