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कारक-निरूपण
कि यदि 'भेद्य' (विशेष्य) शब्द के साथ शष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया गया तो वह शब्द 'भेद्य' (या विशेष्य) न होकर 'भेदक' (विशेषण) बन जायगा और तब विवक्षित अर्थ से विपरीत अर्थ की प्रतीति होने लगेगी।
___ इस बात का उल्लेख भत हरि की भी निम्न कारिका में मिलता है, जिसमें यह कहा गया है कि 'सम्बन्ध' 'परार्थ' अर्थात् दूसरे के लिये होते हैं। इसलिये 'सम्बन्ध' की स्थिति विशेषण तथा विशेष्य दोनों में होती हैं। इस रूप में ये 'सम्बन्ध' 'द्विष्ठ' हैं। फिर भी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग 'गुण' अर्थात विशेषण-वाचक शब्द से ही होता है। भर्तृहरि की कारिका में जिसे 'गुण' कहा गया है उसे ही ऊपर की कारिका में 'भेदक' कहा गया है। 'भेदक', 'गुण' अथवा विशेषण शब्द के साथ ही षष्ठी बिभक्ति के प्रयुक्त होने का कारण यह है कि विशेषण-वाचक शब्द में प्रयुक्त षष्ठी विभक्ति के द्वारा 'सम्बन्ध' का ज्ञान स्पष्ट रूप से होता है क्योंकि उस 'गुण' अथवा विशेषरण-वाचक शब्द के द्वारा विशेष्य रूप से कहा जाता हुआ 'सम्बन्ध' प्रधान (विशेष्य-भूत 'पुरुष') में विशेषण के रूप में उपयुक्त होता है। द्रष्टव्य
द्विष्ठोऽप्यसौ परार्थत्वाद् गुणेषु व्यतिरिच्यते। तत्राभिधीयमानश्च प्रधानेऽप्युपयुज्यते ॥
(वाप० २.७.१५७)
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