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कारक-निरूपण
३६५ जैसे प्रयोगों में एक स्थिर भेंड़ के पास से हटते हुए दूसरे भेड़ को कहने में, हटते हुए भेड़ की अपसरण क्रिया की दृष्टि से, स्थिर भेड़ की 'अपादान' संज्ञा होती है, उसी प्रकार यहाँ 'परस्परस्मान् मेषाव अपसरत:' इस प्रयोग में भी, यद्यपि दोनों में होने वाला विभाग एक है फिर भी दोनों में विद्यमान द्विविध अपसरण क्रियानों के कारण पहले 'भेंड' की 'अपसरण' क्रिया की दृष्टि से दूसरे 'भेंड' की तथा दूसरे 'भेड़' की 'अपसरण' क्रिया की दृष्टि से पहले 'भेंड' की 'अपादान' संज्ञा होगी।
नागेश ने यहाँ जो क्रिया-द्वैविध्य का खण्डन किया है उसे बहुत सयुक्तिक नहीं माना जा सकता क्योंकि भले ही 'अपसरण' या 'पतन' क्रिया एक ही हैं, फिर भी वह विभक्त रूप में वक्ता को विवक्षित अवश्य है, जैसा कि ऊपर (द्र० पृ० ३५६) भर्तृहरि की कारिका से भी स्पष्ट है। विभक्त रूप में विवक्षित होने के कारण ही दोगों मेषों की 'कर्तृ' संज्ञा है तथा विभक्त रूप में ही विवक्षित होने के कारण इन कियाओं से उत्पन्न विभाग का आश्रय होने से 'परस्पर' पद-वाच्य दोनों 'मेषों' की 'अपादान' संज्ञा है। नागेश ने स्वयं 'परस्परस्मान मेषावपसरतः' की ऊपर जो व्याख्या की है उसकी संगति के लिये भी तो क्रिया को द्विविध रूप में विवक्षित मानना आवश्यक है।
[पंचमी विभक्ति का अर्थ
पंचम्यर्थोऽवधिः । 'वृक्षावधिकं पर्ण-कर्तृक पतनम' इति बोधः। 'पर्वतावधिकपतनाश्रयाभिन्नाश्वावधिकम् अश्ववाह-कर्तृक पतनम्' इति बोधः । 'परस्पर-मेषावधिक द्वित्वावच्छिन्न-मेष-कर्तृ कम् अपसरणम्' इति बोधः । इति दिक।
पंचमी (विभक्ति) का अर्थ है 'अवधि'। ('वृक्षात् पर्ण पतति' इस प्रयोग में) 'वृक्ष है 'अवधि' जिसमें तथा 'पर्ण' है 'कर्ता' जिसमें ऐसी 'पतन' क्रिया" यह बोध होता है। ('पर्वतात् पततोऽश्वात् पतत्यश्ववाहः' इस प्रयोग में) "पर्वत' है अवधि जिसमें ऐसी 'पतन' क्रिया के आश्रय से अभिन्न जो अश्व है वह है 'अवधि' जिसमें तथा घुड़सवार है 'कर्ता' जिसमें ऐसा पतन" यह बोध होता है। ('परस्परस्मान् मेषाव् अपसरतः' इस प्रयोग में) “एक दूसरे के प्रति भंड़ें हैं 'अवधि' जिसमें तथा द्विवचनता से युक्त भेड़ें हैं 'कर्ता' जिस में ऐसी अपसरण क्रिया" यह बोध होता है । यह (विवेचन) दिग्दर्शन मात्र है।
पाणिनि ने "ध्र वम् अपायेऽपादानम्" (पा० १.४.२४) सूत्र द्वारा 'अपाय' अर्थात् विभाग में 'ध्र व' अर्थात् अवधिभूत 'कारक' की 'अपादान' संज्ञा तथा "अपादाने पंचमी" (पा० २.३.२८) सूत्र से पंचमी विभक्ति का विधान किया है। इसलिये पंचमी विभक्ति
१.
ह०-अश्ववार-।
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