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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
हो जाने के कारण, इन 'कर्म' आदि कारकों में 'प्रथमा' विभक्ति हो जाती है। उपर्युक्त दोनों वार्तिकें इसी प्राशय को स्पष्ट करती हैं।
[सूत्रकार पारिणनि के अनुसार प्रथमा विभक्ति का अर्थ
सूत्रमते तु कर्तृ-कर्माद्यर्थक-प्रत्ययेन क देरुक्तत्वात् प्रथमाया: प्रातिपदिकार्थ एव अर्थः। तस्य च पाख्यातार्थकादिना अभेदनान्वयेन प्रथमार्थस्य कारकत्वम् । अत एव प्राख्यातार्थ-द्वारक-क्रियान्वयात् तदर्थस्य क्रियाजनकत्वाद् अस्या: कारक-विभक्तित्वेन भाष्ये व्यवहारः। 'चैत्रो भवति' इत्यत्र 'एकत्वावच्छिन्न-चैत्राभिन्न-कर्तृ कं भवनम्' इति बोधः । आख्यात-कदादिना कळदेर् अभिधानेऽपि प्रथमया अनुभूत-कर्तृत्वादि-शक्ति: प्रतिपाद्यते इति तात्पर्यम् । कर्माख्याते तु 'चैत्रेण ग्रामो गम्यते' इत्यत्र 'चैत्र-कर्तृक-व्यापार-जन्य एकत्वावच्छिन्न
ग्रामाभिन्न-कर्म-निष्ठः संयोगः' इति बोधः । ("प्रातिपदिकार्थ-लिङ ग-परिमाण-वचनमात्रे प्रथमा" पा० २.३.४६ इस) सूत्र के अनुसार तो (कर्तृवाच्य तथा कर्मवाच्य के प्रयोगों में) 'कर्ता', 'कर्म' आदि अर्थ वाले ('तिङ' आदि) प्रत्ययों से 'कर्ता' आदि के कथित हो जाने के कारण प्रथमा (विभक्ति) का अर्थ (केवल) 'प्रातिपदिक' रूप अर्थ ही है ('कर्ता' आदि नहीं)। प्रथमा (विभक्ति के) उस ('प्रातिपदिक' रूप) अर्थ की, आख्यात के अर्थ ('कर्ता' आदि) के साथ अभेदरूप से अन्वय होने के कारण, 'कारक' संज्ञा उपपन्न हो जाती है । इसीलिये आख्यात के अर्थ ('कर्ता' आदि, जिनमें प्रातिपदिकार्थ का अभेदान्वय हुआ है) के द्वारा क्रिया के साथ अन्वित होने के कारण उस अर्थ (प्रथमाविभक्त्यर्थ) के क्रिया-जनक होने से इस (प्रथमा विभक्ति) का कारक विभक्ति' के रूप में भाष्य में व्यवहार किया गया है। 'चैत्रो भवति' (चैत्र है) यहां "एकत्व' (संख्या') से विशिष्ट चैत्र (--- रूप जो प्रातिपदिकार्थ उस) से अभिन्न है 'कर्ता' जिसमें ऐसी होना रूप क्रिया' यह बोध होता है। 'पाख्योत' ('तिङ') तथा 'कृत्' आदि प्रत्ययों से 'कर्ता' आदि के कथित हो जाने पर भी प्रथमा विभक्ति अव्यक्त (अप्रकट) 'कर्तत्व' आदि शक्तियों को कहती है यह (दोनों वार्तिकों का) अभिप्राय है। कर्मवाच्य (के प्रयोगों) में तो चैत्रेण ग्रामो गम्यते' (चैत्र के द्वारा गांव जाया जाता है) यहाँ "चैत्र है 'कर्ता' जिसमें ऐसे (गमन) 'व्यापार' से उत्पन्न होने वाला, 'एकत्व' से विशिष्ट ग्रामरूप 'कर्म' में रहने वाला संयोग," यह शाब्दबोध होता है।
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