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विविध पद । पदरूप 'अन्वाख्येय' शब्द के 'प्रतिपादक' हैं पद में कल्पित विविध 'प्रकृति' तथा 'प्रत्यय' रूप अंश ।
इसी तरह अर्थ भी दो प्रकार का है। अखण्ड वाक्य तथा अखण्ड पद के क्रमशः प्रखण्ड वाक्यार्थ तथा अखण्ड पदार्थ रूप अर्थ को 'स्थितलक्षण' अर्थ कहा गया है क्योंकि इस अर्थ में परिवर्तन नहीं होता। इसका स्वरूप (लक्षण) स्थिर (स्थित) होता है। इस अखण्ड वाक्यार्थ तथा अखण्ड पदार्थ रूप 'स्थित लक्षण' अर्थ को समझने समझाने की दृष्टि से इन में, कल्पना के आधार पर, जो विभाग किया जाता है उसे, अखण्ड वाक्यार्थ तथा अखण्ड पदार्थ (पदों के अर्थ) से अपोद्ध त (पृथक् कृत) होने के कारण, 'अपोद्धार' पदार्थ' कहा जाता है । अखण्ड वाक्यार्थ की दृष्टि से उसमें कल्पित विविध पदार्थों (पदों के अर्थों) को 'अपोद्धार पदार्थ' कहा जाता है तथा अखण्ड पदार्थों (पद के अर्थों) की दृष्टि से उन में कल्पित प्रकृत्यर्थों और प्रत्ययार्थों को 'अपोद्धार पदार्थ' कहा जाता है।
शब्द का अपने अर्थ के साथ सम्बन्ध भी दो प्रकार का है :- 'कार्यकारणभाव' सम्बन्ध तथा 'योग्यता' सम्बन्ध। शब्द से अर्थ प्रकट होता है, इस दृष्टि से शब्द अर्थ का अभिव्यंजक निमित्त अथवा कारण है और अर्थ कार्य है। परन्तु अर्थ को प्रकट करने के लिये शब्द का प्रयोग किया जाता है, इस दृष्टि से अर्थ शब्द का प्रयोजक निमित्त है तथा शब्द उसका कार्य है। इस तरह दोनों में 'कार्यकारणभाव' सम्बन्ध है। इसी प्रकार शब्द तथा अर्थ दोनों में योग्यता' सम्बन्ध भी है। शब्द में अर्थ को प्रकट करने की योग्यता है तथा अर्थ में शब्द के द्वारा प्रकट होने की योग्यता है। इस 'सम्बन्ध' के विषय में व्याकरण-दर्शन को यह भी मान्यता है कि साधु अथवा शिष्ट शब्दों तथा उनके अर्थों में विद्यमान सम्बन्ध दो कार्य करते हैं। जहाँ वे अर्थ के बोधक होते हैं. वक्ता के तात्पर्य को प्रकट करने में सहायक होते है, वहीं वे एक प्रकार के अभ्युदय, अदृष्ट अथवा पुण्य के उत्पादक भी होते हैं। असाधु अर्थात् अशिष्ट अथवा अपभ्रष्ट एवं म्लेच्छ शब्दों में विद्यमान सम्बन्ध अर्थ का बोध तो कराते हैं परन्तु अदृष्ट धर्म अथवा पुण्यविशेष के उत्पादन की क्षमता उनमें नहीं होती।
इन शब्द, अर्थ तथा सम्बन्ध, तीनों को व्याकरणदर्शन नित्य मानता है। वाचक शन्द वक्ता के प्रान्तर ज्ञान, चेतना अथवा प्रात्मा का ही एक स्थूल एवं बाह्य अभिव्यक्ति है अतः वह नित्य है। घट आदि शब्दों में विद्यमान घटशब्दत्व आदि जाति की दृष्टि १. इस विषय में द्रष्टव्य मेरा लेख "अपोद्वार पदार्थ तथा स्थितलक्षण अर्थ", भाषा पत्रिका (वर्ष १२,
अंक ३, मार्च १९७३) में प्रकाशित । व्याकरणदर्शन के प्रतिपाद्यभूत द्विविध शब्द, अर्थ तथा सम्बन्ध का संकलन भत हरि ने वाक्यपदीय की निम्न कारिकाओं में किया है :अपोद्धारपदार्था में ये चार्थाः स्थितलक्षणा: । अन्वाख्येयाश्च ये शब्दा ये चापि प्रतिपादका: ॥ १.२४ कार्यकारणभावेन योग्यभावेन च स्थिताः । धर्मे ये प्रत्यये चांगं सम्बन्धा: साध्वसाधुष ।। १.२५ द्र०-महा० पस्पशाह्निक १० ४७; सिद्ध शब्दार्थसम्बन्धे । तथा वाप० १.२३ नित्या: शब्दार्थसम्बन्धा:, समाम्नाता महर्षिभिः । सूत्राणां सानुतंत्राणां भाष्याणां च प्रणेतभिः।
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