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निपातार्थ-निर्णय
२३३
बोधः, इति 'अयोगव्यवच्छेदः' । न तु नीलः" इति तु' फलति । क्रियायाम्-'नीलं सरोजं भवत्येव' । 'अत्यन्तः' अतिशयितः, 'अयोगः' सम्बन्धाभावः । तस्य 'व्यवच्छेदः' अभावः । तथा च 'कदाचिन् नीलत्वगुणवद् अभिन्नं यत् सरोजं तत्कर्तृ का सत्ता' इति बोधः । 'कदाचिद् अन्यादृशगुण-संयुक्तम्' इत्यपि गम्यते, इति 'अत्यन्तायोगव्यवच्छेदः' ।
वह 'अवधारण' तीन प्रकार का होता है। विशेष्य' के साथ संगत होने वाले एवकार' में वह (अवधारण) अन्य (विशेषण) में धर्म के सम्बन्ध का अभाव रूप, 'विशेषरण' के साथ संगत होने वाले 'एवकार' में (वह 'अवधारण') अयोग (सम्बन्धाभाव) का अभावरूप तथा 'किया' पद के साथ सम्बद्ध होने वाले ‘एवकार' में (धर्म के) सम्बन्ध के अत्यन्ताभाव का व्यवच्छेद (अभाव) रूप वाला होता है।
विशेष्य में (संगत होने वाले 'एवकार' का उदाहरण)-'पार्थ एव धनुर्धरः' (अर्जन ही धनुष धारण करने वाला है)। 'अर्जुन से अन्य व्यक्तियों में न रहने वाली जो धनुर्धरता है उस (धनुर्धरता) से युक्त अर्जुन' यह ज्ञान होता है। इसलिये (यहाँ) अन्य (व्यक्ति) में धनुर्धरता के सम्बन्ध का व्यवच्छेद (अभाव) है।
विशेषण में (सम्बद्ध होने वाले 'एवकार' का उदाहरण)- 'शङ्खः पाण्डुर एब' (शंख सफेद ही होता है)। 'प्रयोग' (अर्थात्) सम्बन्ध का अभाव । उसका 'व्यवच्छेद' (अर्थात्) निवृत्ति । दो निषेधों के द्वारा प्राकरणिक अर्थ को दृढ़ता का ज्ञान होने से 'अटूट सम्बन्ध से रहने वाली श्वेततागुण से शंख युक्त है' यह बोध होता है। इस प्रकार (यहाँ) 'अयोग' का अभाव (धर्म का अटूट सम्बन्ध) है। न कि (शंख) नील वर्ण वाला (भी) होता है यह ‘फलित' (अर्थजनित अर्थ) है।
क्रिया में (सम्बद्ध होने वाले 'एवकार' का उदाहरण)-'नीलं सरोज भवत्येव' (नीला कमल होता हो है)। 'अत्यन्त' (अर्थात्) अत्याधिक (अथवा नित्य) 'प्रयोग' (अर्थात्) सम्बन्ध का अभाव । उस (अत्यन्तायोग) का व्यवच्छेद (अर्थात्) अभाव । इस तरह 'कभी नोलत्व गुण (वर्ण) वाला जो कमल उसकी सत्ता' यह ज्ञान होता है। 'कभी अन्य (नीलत्वगुण से भिन्न) गुण से युक्त' १-निस०, काप्रशु०-हि।
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