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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
स्थिति वहां होती है जहाँ 'न' का किसी उत्तरपद के साथ समास हुआ रहा है । जैसे 'अब्राह्मणः' । तथा दूसरी स्थिति वहाँ पायी जाती है जहां क्रिया के साथ 'न' का प्रयोग होता है। जैसे- 'घटो नास्ति' (घड़ा नहीं है) । इन में से पहले को 'पर्युदास नञ्' कहते हैं तो दूसरे को 'प्रसज्य नञ्' । 'न' के इस द्विविध रूप का वर्णन निम्न श्लोकों में मिलता है
द्वौ नौ च समाख्यातौ पर्युदास-प्रसज्यको। पर्युदासः सदृग्ग्राही प्रसज्यस्तु निषेधकृत् ॥
(पलम० की वंशीधर मिश्रकृत टीका के पृ० ७५ पर उद्धृत) प्राधान्यं तु विधेर्यत्र प्रतिषेधेऽप्रधानता। पर्युदासः स विज्ञेयः यत्र उत्तरपदेन नञ् ॥
(शब्दकल्पद्रुम कोश में मलमासतत्त्व के नाम से उद्धृत)
अप्राधान्यं विधेर्यत्र प्रतिषेधे प्रधानता । प्रसज्यप्रतिषेधोऽयं क्रियया सह यत्र नञ् ॥
(वाचस्पत्यम् कोश में 'शाब्दिकों' के नाम से उद्धृत) तत्र प्रारोपविषयत्वं नपर्युदासद्योत्यम् -- वैयाकरणों की दृष्टि में 'पर्युदास नञ्' से अभिव्यक्त होने वाला अर्थ है-'पारोपविषयत्व', या 'आरोपितत्व' अर्थात् अारोप का विषय बनना । 'प्रारोप' की परिभाषा है-- "प्रतद्वति तत्प्रकारज्ञानम् अारोपः" (न्यायकोश), अर्थात् जिस व्यक्ति या वस्तु में जो धर्म नहीं है उसका उस व्यक्ति या वस्तु में इच्छा से कल्पना कर लेना ही 'आरोप' है । जैसे-'सिंहो माणवक:' (बालक सिंह है) इत्यादि प्रयोगों में बालक में सिंह का आरोप।
___ इस प्रकार 'पर्युदास नञ्' यह द्योतन करता है कि उसके अव्यवहित समीप में उच्चरित शब्द का वाच्य अर्थ 'आरोपित ज्ञान की विषयता वाला' है । जैसे-- 'अब्राह्मणः' प्रयोग मे 'न' के साथ 'ब्राह्मण' पद का समास हुआ है। 'नञ्' पूर्वपद तथा 'ब्राह्मणः' उत्तरपद है । इस तरह 'पर्युदास नञ्' के इस प्रयोग में उत्तरपद (ब्राह्मण) का वाच्य अर्थ है- 'पारोपविषयत्ववान् ब्राह्मणः' (आरोपविषयता वाला ब्राह्मण)। इसका अभिप्राय यह है कि आरोपित अथवा काल्पनिक ज्ञान का विषयभूत ब्राह्मण, अर्थात् जिसमें वास्तविक ब्राह्मणता नहीं है अपितु उसकी कल्पना कर ली गई है, ऐसा ब्राह्मणेतर कोई मनुष्य । इस अब्राह्मण व्यक्ति में रहने वाली ब्राह्मणता ही विषयता है । इस विषयता से युक्त ब्राह्मण' यह 'अब्राह्मणः' इस समस्त शब्द के 'ब्राह्मण' भाग का वाच्य अर्थ है । 'ब्राह्मण' शब्द का यहां यही वाच्य अर्थ है इस तात्पर्य का द्योतक है, इस समस्त पद के पूर्व में विद्यमान, 'न' निपात । अतः 'पर्युदास न' का द्योत्य अर्थ है-'पारोपित-विषयता' ।
उत्तरपदार्थप्राधान्यं नञ्तत्पुरुषस्य- 'पर्युदास नञ्' 'पआरोप-विषयता' का द्योतक है इस सिद्धान्त की पुष्टि में नागेश ने दो हेतु प्रस्तुत किया है । पहला हेतु है-- "उत्तरपदार्थप्रधानो नसमासः" (नञ्-समास उत्तरपदार्थप्रधान होता है) यह स्वीकृत
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