________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
धात्वर्थ-निर्णय
१६६
जायगा। इसी बात को "स्थान्यर्थाभिधानसमर्थस्यैव आदेशत्वम्" इस न्याय के द्वारा प्रकट किया गया है। इसलिये 'शतृ' तथा 'शान' का भी वही वाच्यार्थ मानना होगा जो उनके 'स्थानी' 'लकार' का है । अतः जब "लः कर्मणि." सूत्र के द्वारा 'लकारों' का अर्थ 'कृति' निश्चित कर दिया गया तो उसी को अपना वाच्यार्थ बनाकर 'शतृ' तथा 'शान' भी, वाच्यार्थ-निर्णय की दृष्टि से, निराकांक्ष हो गये । फिर उन निराकांक्ष 'शतृ' तथा 'शान' के वाच्यार्थ का निर्णय "कर्तरि कृत्" सूत्र द्वारा कैसे होगा जब कि "आकांक्षितविधानं ज्यायः” (साकांक्ष अथवा अनिर्णीत शब्द के अर्थ का विधान ही उचित है) यह न्याय विद्यमान है । अतः "कर्तृरि कृत्” उन, 'शतृ' तथा शानच्' से भिन्न, प्रत्ययों के वाच्यार्थ का निर्णय करेगा जिनका, “लः कर्मणि" जैसे किसी अन्य सूत्र द्वारा, निर्णय नहीं किया गया है।
दूसरी बात यह है कि यदि, उपर्युक्त न्याय का विरोध करके, “कर्तृरि कृत्" सूत्र के द्वारा ही 'शत' तथा 'शानच्' प्रत्ययों के अर्थ का निर्णय भी किया गया तो यह दोष उपस्थित होगा कि 'देवदत्तेन शय्यमाने आस्यमाने च यज्ञदत्तो गतः' जैसे प्रयोग नहीं हो सकेंगे, जिनमें 'भाव' को कहने के लिये 'शानच' प्रत्यय प्रयुक्त हुआ करता है क्योंकि "कर्तरि कृत' सूत्र तो, नैयायिकों की उपर्युक्त पद्धति के अनुसार, 'कर्ता' को कहने के लिये ही 'शानच्' का विधान कर सकता है, 'भाव को कहने के लिये नहीं। अत: यही मानना चाहिये कि, वाच्यार्थ की दृष्टि से निराकांक्ष रहने के कारण, 'शतृ' तथा 'शानच्' प्रत्ययों के वाच्यार्थ का निर्णय "कर्तरि कृत्' सूत्र द्वारा नहीं हो सकता।
["नामार्थयोरभेदेनान्वयः,” इस न्याय के प्राधार पर भी ‘शत' तथा 'शान' प्रत्ययों का अर्थ 'कर्ता' नहीं माना जा सकता
ननु नामार्थयोरभेदान्वयानुरोधात् 'शतृ'-'शानच्" प्रादीनां कर्तरि शक्तिरिति चेत् -न । 'पचतिकल्पं पचतिरूपं देवदत्तः' इत्याद्यनुरोधेन तिक्ष्वपि कत्तु रेव वाच्यत्वौचित्यात् ।
"दो (समानविभक्ति वाले) प्रातिपदिकार्थों के अभेदान्वय" (इस न्याय) के अनुरोध से (यदि केवल) 'शत 'शानच्' आदि (प्रत्ययों) की 'कर्ता' में (वाचकता-) 'शक्ति' मान ली जाय तो (वह भी) ठीक नहीं है क्योंकि 'पचति-कल्पं, पचतिरूपं देवदत्तः' (कुछ कम पकाने वाला, अच्छा पकाने वाला देवदत्त) इत्यादि (प्रयोगों) के अनुरोध से 'तिङ्' प्रत्ययों का भी वाच्यार्थ 'कर्ता' मानना ही उचित है ।
१. ह.-- वुल। २. इसके बाद ह० में “कर्तरि कृत्' इत्यनेन" यह पाठ अधिक है।
For Private and Personal Use Only