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व्यपेक्षावादी के एक अन्य कथन का खण्डन; "प्रत्यय अपने समीपवर्ती पद के अर्थ से सम्बद्ध स्वार्थ के बोधक होते हैं। इस न्याय की अनुकूलता 'व्यपेक्षावाद' में ही है" नैयायिकों के इस कथन का निराकरण; 'व्यपेक्षावाद' के सिद्धान्त में एक और दोष; 'एकार्थीभाव सामर्थ्य पर किये जाने वाले कुछ अन्य आक्षेपों का समाधान; 'व्यपेक्षा' सामर्थ्य में अनेक दोष दिखाकर 'एकार्थीभाव' सामर्थ्य का समर्थन; 'व्यपेक्षा' सामर्थ्य में कुछ और दोष ।
परमल घुमंजूषा में उद्धृत सन्दर्भ परमलधुमंजूषा में उद्धृत ग्रन्थ एवं प्रन्थकार शुद्धिपत्र
४३६-४५० ४५१-५२
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