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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
[कर्तृवाच्य तथा भाववाच्य में तिङन्तपद क्रिया-प्रधान होता है तथा कर्मवाच्य में 'फल'-प्रधान]
"भावप्रधानम् अाख्यातम् सत्त्वप्रधानानि नामानि" (निरुक्त १.१) इति निरुक्तो'क्त र्व्यापार-मुख्यविशेष्यको बोधः । तत्र तिङ्वाच्यं-सङ्ख्या-विशिष्ट
कारकं कालश्च-व्यापार-विशेषणम् । "तिङन्त (शब्द) 'व्यापार'-प्रधान होते हैं तथा 'प्रातिपदिक' ('नाम') शब्द 'द्रव्य'-प्रधान होते हैं' निरुक्त के इस कथन के अनुसार धातु से इस प्रकार का 'शाब्दबोध' होता जिसमें 'व्यापार' मुख्य रूप से विशेष्य होता है। उस ('शाब्दबोध') में 'तिङ' के अर्थ-सङ ख्या-विशिष्ट 'कारक' तथा 'काल' (ये दोनों)'व्यापार' के विशेषरण हैं।
___ भावप्रधान....."नामानि- 'भावः (क्रिया) प्रधानं यस्मिन् तद् भाव-प्रधानम् पाख्यातम्' इस व्युत्पत्ति के अनुसार 'पाख्यात' या तिङन्त शब्द में 'भाव' (क्रिया अथवा 'व्यापार') की प्रधानता होती है- प्रधान रूप से 'व्यापार' का ही ज्ञान होता है । यहाँ 'भाव' शब्द को क्रिया अथवा 'व्यापार' तथा 'फल' दोनों का वाचक मानना चाहिये । 'भाव' शब्द में 'भू' धातु से 'कारण' कारक में 'घञ्' प्रत्यय मानने पर 'भाव' शब्द से 'व्यापार' अर्थ का बोध होगा तथा 'कर्म' कारक में 'धञ्' प्रत्यय मानने पर 'फल' का बोध होगा। इस प्रकार 'पाख्यात' (तिङन्त) शब्द में कभी 'व्यापार' की तथा कभी 'फल' की प्रधानता मानी जाती है। इसीलिये कर्तृवाच्य में 'व्यापार' की तथा कर्मवाच्य में 'फल' की प्रधानता होती है। इसी प्रकार 'सत्त्व' अर्थात् द्रव्य की प्रधानता जिसमें रहती है उसे 'नाम' अथवा 'प्रातिपदिक' शब्द कहा जाता है। कात्यायन तथा पतंजलि ने भी महाभाष्य (१.३.१) में 'पाख्यात' को क्रिया-प्रधान माना है तथा धातु की परिभाषा के रूप में "क्रिया-वाचनो धातुः" इस वाक्य को प्रस्तुत किया है। परन्तु तिङन्त पदों की क्रियाप्रधानता केवल कर्तृवाच्य तथा भाववाच्य के वाक्यों में ही मानी जाती है। कर्मवाच्य के तिङन्त पदों में तो 'फल' की प्रधानता ही होती है, यह ऊपर कह आये हैं।
व्यापार-मुख्य-विशेष्यको बोध:-- 'फल' तथा 'व्यापार' अथवा फलानुकूल 'व्यापार' को धातु का अर्थ माना गया है इसलिये सामान्यतया दो प्रधान अथवा विशेष्य होंगे। इन दो विशेष्यों में भी 'व्यापार' मुख्य विशेष्य है। इस का कारण यह है कि 'फल' भी कर्तवाच्य के प्रयोगों में, 'व्यापार' के प्रति विशेषण बन जाता है। द्र० - "फले प्रधानं व्यापारस्तिय॑स्तु विशेषणम्" (वैभूसा० पृ० ८)।
१. ह.-यास्कोक्तेः।
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