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वैयाकरण- सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
को 'व्यंजना व्यापार' का बोध होता है, जो वाच्यार्थ में, वाच्य तथा लक्ष्य दोनों प्रथों से भिन्न, किसी (व्यंग्य) अर्थ का अभिव्यंजक हेतु है ।
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संस्कार - विशेषः - यहाँ 'व्यञ्जना' को संस्कार- विशेष प्रथवा भावना - विशेष कहा गया है । यह संस्कार यद्यपि 'समवाय' सम्बन्ध से सहृदयों तथा प्रतिभासम्पन्न मेधावियों के हृदय में रहता है । परन्तु परम्परया वह शब्द में भी है। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार 'अभिघा' या 'लक्षणा' साक्षात् शब्द में रहने वाली 'वृत्तियाँ' हैं, उस प्रकार की 'व्यञ्जना वृत्ति' नहीं है । 'व्यंजना वृत्ति' तो शब्दनिष्ठ बाद में है पहले वह सहृदयों के हृदय में रहने वाला संस्कार है । इसीलिये 'व्यञ्जना' को सहृदय-हृदय-निष्ठ संस्कार- विशेष ही माना गया, भले ही परम्परया वह शब्द में भी हो। अपने इस विशिष्ट स्वरूप के कारण ही 'व्यंजना' को विशेष चमत्कार का आधायक कहा गया है। द्र०
प्रतीयमानं पुनरन्यदेव वस्त्वस्ति वाणीषु महाकवीनाम् । यत्तत्प्रसिद्धावयवातिरिक्तं विभाति लावण्यम् इवाङ्गनासु ॥
परन्तु यहाँ यह विचारणीय है कि 'व्यंजना' को शब्दनिष्ठ व्यापार- विशेष माना जाय या हृदय-निष्ठ संस्कार - विशेष । साहित्यशास्त्र के आचार्यों ने ' व्यंजना' को व्यापार- विशेष ही माना है । द्र० - " योऽर्थस्यान्यार्थधीहेतुर्व्यापारो व्यक्तिरेव सा " ( काव्यप्रकाश, ३. २२) ।
[ वैयाकरण विद्वानों को भी व्यंजना वृत्ति अभीष्ट है ]
( ध्वन्यालोक १.४ )
नागेश यहाँ 'व्यंजना' को संस्कार- विशेष मानते हैं। संभवतः यह नागेश की अपनी उद्भावना है । संस्कार - विशेष मानने पर भी 'व्यंजना' को शब्दनिष्ठ उसी तरह कहा जा सकता है जिस प्रकार 'आकांक्षा' यद्यपि हृदय-निष्ठ होती है फिर भी उसे शब्दनिष्ठ मान लिया जाता है ।
अत एव निपातानां द्योतकत्वं स्फोटस्य च व्यंग्यता हर्यादिभिर् उक्ता । द्योतकत्वं च - "स्व समभिव्याहृतपद - निष्ठ- शक्ति - व्यंजकत्वम्" इति । वैयाकरणानाम् अप्येतत् स्वीकार आवश्यकः ।
इसीलिये ( व्यंजना वृत्ति को स्वीकार करने के कारण ही ) भर्तृहरि आदि ने निपातों की द्योतकता तथा स्फोट की व्यंग्यता प्रतिपादित की है ।
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द्योतकता ( का अभिप्राय ) है - " अपने साथ (श्रव्यवहित-पूर्व या अव्यवहितपश्चात्) उच्चरित पद में विद्यमान (अर्थाभिधायिका) शक्ति का अभिव्यंजक होना ।" इसलिये ( निपातों को द्योतक या व्यंजक मानने तथा स्फोट को व्यंग्य मानने के कारण) वैयाकरण विद्वानों को भी यह (वृत्ति) मानना आवश्यक है ।