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लक्षणा-निरूपण
[लक्षणा के दो और भेद]
प्रकारान्तरेणापि सा द्विविधा-अजहत्स्वार्था जहत्स्वार्था च । स्वार्थ-संवलित-परार्थाभिधायिका 'अजहत्स्वार्था' । तेन 'छत्रिणो यान्ति', 'कुन्तान् प्रवेशय', 'यष्टीः प्रवेशय' काकेभ्यो दधि रक्ष्यताम्' इत्यादौ 'छत्रि-सहित-सेना''कुन्तास्त्र-सहित-पुरुष'-'काक-सहित-सर्व-दध्युपघातक'बोधः ।
वह ('गौणी' तथा 'शुद्धा' लक्षणा), दूसरी तरह से, फिर दो प्रकार की होती है-'अजहत्स्वार्था' तथा 'जहत्स्वार्था' । 'शक्यार्थ' (वाच्यार्थ) के साथ लक्ष्यार्थ का बोध कराने वाली 'अजहत्स्वार्था' है। इस कारण 'छत्रिणो यान्ति' (छत्र धारण करने वाले जाते हैं), 'कुन्तान् प्रवेशय' (भालों का प्रवेश कराग्रो), 'यष्टी: प्रवेशय,' (लाठियों को प्रविष्ट होने दो), 'काकेभ्यो दधि रक्ष्यताम्' (कौओं से दही की रखवाली करो), इत्यादि (प्रयोगों) में 'छत्रधारी सैनिकों के साथ सेना', 'भालों तथा छड़ियों सहित मनुष्यों और कौओं के साथसाथ दही को खराब करने वाले सभी प्राणियों' का ज्ञान होता है।
अजहत्स्वार्था - वाक्यार्थ में शक्यार्थ अथवा वाच्यार्थ की ठीक-ठीक संगति लगाने के लिये दूसरे अर्थ का आक्षेप करते हुए भी इस लक्षणा में शब्द अपने वाच्यार्थ को नहीं छोड़ते । इसी कारण इसका अन्वर्थक नाम 'अजहत्स्वार्था' पड़ा। इस शब्द की व्युत्पत्ति की जाती है-"अजहत् अत्यजन् स्वार्थः मुख्यार्थः यां सा अजहतस्वार्था", अर्थात् वाच्यार्थ अथवा मुख्यार्थ जिस लक्षणा का परित्याग न करे वह 'लक्षणा' 'प्रजहत्स्वार्था' है। नागेशभट्ट ने महाभाष्य की अपनी उद्द्योत टीका (२.१.१, पृ० २६) में 'जहत्स्वार्था' तथा 'अजहत्स्वार्था' शब्द की व्युत्पत्ति निम्न रूप में की है-“जहति परित्यजन्ति स्वानि पदानि यम् (अर्थम्) स जहत्स्वोऽर्थः । जहत्स्वोऽर्थों यस्याः लक्षणायाः सा जहत्स्वार्था । न जहत्स्वार्था अजहत्स्वार्था'।
यहाँ 'अजहत्स्वार्था' लक्षणा में शक्यार्थ तथा लक्ष्यार्थ दोनों का क्रिया में अन्वय होता है। ऊपर इस 'लक्षणा' के 'छत्रिणो यान्ति' इत्यादि अनेक उदाहरण दिये गए हैं। उन सभी प्रयोगों में 'छत्रिणः' इत्यादि शब्द अपने अपने शक्यार्थ को नहीं छोड़ते। क्योंकि कहने वाले का अभिप्राय यह होता है कि छत्र धारण करने वाले सैनिक तो जाते ही हैं, पर उनके साथ ही ऐसे सैनिक भी जाते हैं जो छत्र धारण नहीं किये हुए हैं। इसी प्रकार भाले तथा छड़ियों के प्रवेश का अभिप्राय उनसे युक्त व्यक्तियों का प्रवेश कराना ही होता है । 'कौमों से दही की रखवाली करो' इस कथन का यह अभिप्राय कदापि नहीं होता कि केवल कौओं से ही दही की रक्षा करनी है, अपितु कौए, कुत्ते, बिल्ली इत्यादि उन सभी जानवरों से दही की रक्षा करनी है, जो भी दही को दूषित कर सकते हैं।
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