________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
६२
वैयाकरण सिद्धान्त-परम- लघु मंजूषा
परन्तु 'प्रनायक : ' में गत्वाभाव के कारण 'प्रगता नायका श्रस्माद् देशाद् असो प्रनायको देश:' इस विग्रह के अनुसार अन्यपदार्थ (देश) की प्रतीति होती है । यहां इस विग्रह के कारण 'गम्' धातु के प्रति 'प्र' की 'उपसर्ग' संज्ञा है, 'नी' धातु के प्रति नहीं। क्योंकि यह नियम है कि यं प्रति प्रादयः प्रयुक्तास्तं प्रति गत्युपसर्गसज्ञा भवन्ति । यहां 'गम्' धातु के साथ 'प्र' प्रयुक्त है, इसलिये 'नी' के साथ उसकी 'उपसर्ग' संज्ञा नहीं हो सकती । अतः 'प्र' की उपसर्ग संज्ञा के प्रभाव में उपर्युक्त सूत्र से यहाँ 'णत्व' नहीं हो सका ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only