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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा इत्युच्यते । एवं 'मण्डप-पदं' गृहविशेषे 'रूढम्', मण्डपानकर्तरि 'यौगिकम्। _ 'अश्वगन्धा' आदि पद एक औषधि-विशेष के लिये रूढ़ हैं। (परन्तु) अश्वसम्बन्धी गन्ध से युक्त होने के कारण ('अश्वगन्धा' शब्द से) अश्वशाला के बोघ में (वह शब्द) 'यौगिक' है। इस (प्रकार के शब्द) को 'यौगिकरूढ़ि' कहा जाता है । इसी प्रकार 'मण्डप' शब्द गृह के एक भाग विशेष के अर्थ में 'रूढ़' है । (परन्तु) 'मॉड' पीने वाले (के अर्थ) में (वह शब्द) 'यौगिक' है। अश्वगन्धा (अथवा असगन्धा) एक विशेष औषधि को कहते है, जिसका अवयवार्थ (अश्व के गन्ध के समान गन्ध वाला) से कोई सम्बन्ध नहीं दिखाई देता। इसलिये इस औषधि-विशेष के अर्थ में 'अश्वगन्धा' शब्द को 'रूढ़ि' मानना चाहिये । परन्तु अश्व के गन्ध से युक्त अस्तबल के लिये यदि इस शब्द का प्रयोग किया जाय तो वहाँ यौगिकार्थ या अवयवार्थ के विद्यमान होने के कारण, यह शब्द 'यौगिक' होगा। इस तरह विशेष प्रौषधि की वाचकता की दृष्टि से 'अश्वगन्धा' शब्द 'रूढि' तथा वाजिशाला के वाचक के रूप में 'यौगिक' है। अतः इस प्रकार के शब्दों को यौगिकरूढ़ि' कहा जाता है। __'मण्डप' भी इसी प्रकार का शब्द है। क्योंकि जब 'सभा-मण्डप' या 'यज्ञ-मण्डप' जैसे शब्दों में इसका प्रयोग 'घर के ऊपरी भाग' आदि अर्थों के लिये किया जाता है, जबकि अवयवार्थ का कोई ज्ञान नहीं होता, तब 'मण्डप' शब्द 'रूढ़ि' है। परन्तु, 'मण्डं पिबतीति मण्डपः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार, जब मांड पीने वाले के लिये 'मण्डप' शन्द का प्रयोग किया जाता है तब यह शब्द 'यौगिक' बन जाता है। 'योगरूढ़ि' तथा 'यौगिकरूढ़ि' का अन्तर–'योगरूढ़ि' शब्द की व्युत्पत्ति की जाती है-'योगेन सहिता रूढ़ि: योगरूढ़ि:', अर्थात् जहां शब्द में प्रकृति-प्रत्यय का योग सुसंगत तो हो जाय पर फिर भी शब्द किसी एक पदार्थ में ही 'रूढ़' हो गया हो। जैसे ऊपर प्रदर्शित 'पङ्कज' आदि शब्द, जिनमें 'यौगिक' अर्थ ('पङ्क में उत्पन्न होना) से अन्वित 'रूढि' अर्थ (कमल) का बोध होता है। द्र०-यौगिकार्थ-बुद्धि -रूप-सहकारि-लाभाद् विशिष्टार्थोपस्थापकत्वं रूढ़ : योगरूढत्वम् (न्यायकोश) अर्थात् 'यौगिक' अर्थ के ज्ञानरूप सहकारी के साथ 'रूढ़ि' के द्वारा किसी विशिष्ट अर्थ को प्रस्तुत करना 'योगरूढ़िता' परन्तु 'यौगिकरूढ़ि' शक्ति उन शब्दों में मानी जाती है जिनमें 'यौगिक' अर्थ तथा 'रूढ़ि' अर्थ की स्वतंत्र रूप से पृथक् २ प्रयोगों में प्रतीति हो । 'यौगिकरूढ़ि' शब्द की व्युत्पत्ति की जाती है-'यौगिकं च तद् रूढ़ च' अर्थात् जो 'यौगिक' भी हो तथा साथ ही 'रूढ़ि' भी हो-एक ही शब्द का कहीं 'यौगिक' रूप में प्रयोग हो तथा कहीं 'रूढ़ि रूप में। इसका दूसरा नाम 'रूढ़यौगिक' भी मिलता है (द्र०-शब्दशक्तिप्रकाशिका, श्लोक-१५) । For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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