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शक्ति-निरूपण
ऐसा पतंजलि तथा भर्तृहरि इत्यादि वैय्याकरणों का मत है, जिनके वचनों को स्वयं नागेश ने ही आगे की पंक्तियों में उद्धत किया है। वस्तुतः उन सभी प्रकार के शब्दों में, जिनका व्यवहार मानव अर्थप्रकाशन की दृष्टि से करता है, यह 'शक्ति' विद्यमान रहती है, चाहे वे शब्द संस्कृत के हों या अपभ्रशभूत अन्य भाषाओं के हों ।
इसका कारण यह है कि 'शक्तिग्रह' के जो अनेक हेतु हैं उनमें 'व्यवहार', अर्थात् शब्द के प्रयोग, को प्रमुख कारण माना गया है और वह 'व्यवहार', जिस प्रकार साधु शब्दों में 'शक्ति' का ज्ञान कराता है, अर्थात् यह बताता है कि यह शब्द इस अर्थ का वाचक है, उसी प्रकार असाधु शब्दों में भी 'शक्ति' का बोध कराता है । 'शक्ति'-ग्राहक हेतुओं का संग्रह निम्न कारिका में किया गया है
शक्ति-ग्रहं व्याकरणोपमान-कोशाप्तवाक्याद् व्यवहारतश्च । वाक्यस्य शेषाद् विवृतेर्वदन्ति सान्निध्यत: सिद्धपदस्य वृद्धाः ॥
इन व्याकरण, उपमान, कोश, आप्तवाक्य, व्यवहार आदि हेतुओं में लोकव्यवहार की प्रमुखता स्वतः स्पष्ट है, क्योंकि कात्यायन तथा पतंजलि आदि ने लोकव्यवहार को व्याकरण आदि शास्त्रों का प्रमुख आधार माना है ।
व्यवहार-दर्शनेन .... तत्-सम्भवः-छोटे छोटे बालकों तथा पशु पक्षियों को मानव की भाषा से जो अर्थ-ज्ञान होता है उसका कारण है उन्हें पूर्व-जन्म में अनुभूत शब्द-शक्ति का स्मरण होना। यह स्मृति उन्हें तब होती है जब वे किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा किये गये शब्द-प्रयोग अथवा व्यवहार को देखते हैं। जिन्हें उन उन शब्दों की शक्ति का बोध नहीं है उन अल्पायु बालकों को भी उन शब्दों के अर्थ का ज्ञान होता ही है, इसका प्रतिपादन भर्तृहरि ने वाक्यपदीय, ब्रह्मकाण्ड, की निम्न कारिका में किया है :
इतिकर्तव्यता लोके सर्वा शब्द-व्यापाश्रया। यां पूर्वाहित-संस्कारो बालोऽपि प्रतिपद्यते ॥ १.१२१
अर्थात् सम्पूर्ण कर्त्तव्य-प्रकार-विषयक ज्ञान शब्द-व्यवहार के ऊपर ही प्राश्रित है। इस ज्ञान को बालक भी, जिसमें पूर्व-जन्म का शब्द-विषयक संस्कार विद्यमान है, अपने दूसरे साथी बालक की अव्यक्त भाषा से ही जान लेता है।
परन्तु शक्ति-ग्रह में पूर्व-जन्म की अनुभूति को कारण मानना विवादास्पद प्रतीत होता है। क्योंकि भिन्न भिन्न भाषाओं के शब्दों की शक्तियाँ भी भिन्न भिन्न होती हैं। यह आवश्यक तो नहीं है कि जिसने पूर्व जन्म में संस्कृत भाषा के संस्कार प्राप्त किये हों वह बाद के जन्म में भी संस्कृत-भाषा-भाषियों में ही उत्पन्न हो ।
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