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ग्रन्थ की अनेक पंक्तियों को समझने तथा हृदयंगम करने में आदरणीय मित्रवर डॉ० श्रीनिवास शास्त्री, रीडर संस्कृत विभाग, से मुझे विशेष सहायता प्राप्त हुई है। संस्कृत व्याकरण शास्त्र के पारदृश्वा विद्वान् श्री पं० चारुदेव शास्त्री ने सम्पूर्ण अनुवाद एवं व्याख्या की पाण्डुलिपि का अवलोकन कर उसे अनेक स्थलों पर संशोधित किया है । मेरे सम्माननीय सहयोगी श्री पं० स्थाणुदत्त जी ने भूमिका भाग को देखकर उपयोगी सुझाव दिये हैं। इन सब के प्रति मैं हृदय से आभारी हूँ। प्रिय शिष्या डॉ० अमिता रानी गुप्ता ने पाण्डुलिपि के पुनः लेखन इत्यादि में विशेष सहयोग दिया है। उन्हें मैं हृदय से साधुवाद, आशीर्वाद एवं शुभकामनायें देता हूँ।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रेस मैनेजर श्री टी० फिलिप तथा उनके सहयोगियों को मैं अनेक धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने इस कार्य को सुचारु रूप से सम्पन्न किया।
१८-१-७५
कपिल देव शास्त्री
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