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जवाहिलालेन आचार्यग गया तत्त्वार्थिनाम- अश्लीलार्थपरित्यागेन सारग्राहिणां प्रीत्यै- प्रमोदाय असौ वृत्तबोधो विरचितः।। (प्रति०) अप्रथणे= मार्गशीर्ष । म्पष्टमन्यद्वयाख्यातं च ।। भन्नत्सिन्धुवर्स-ग्रह.., चन्द्रमितऽवगणमामि गुरुभक्तः । अहि तिथि-वलक्षपक्ष, घासीलालो व्यधा-टीकाम् ॥
॥इति वृत्तवाधीका समाना (भाषा) श्री जिन भगवान के चरण कमलों को हत्य में
कर स्थानकामी मुनि श्रीजवाहिरलाल मावार्य ने मारग्राही मजनों के मन्तोर के लिये १६८४ वर्ष के मृगशिा म. हीने के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि में इन पृतबोध को रचा ॥५५॥
इति वृत्तयोधभाषा समाप्त
॥ ममाप्तोऽयं ग्रन्थः॥
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