________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(५३)
पुष्पिताग्रा
funeraोर्न-नौ र-यौ चे-, न्न ज-ज-रगाश्च तद्न्यपादयोः स्युः । कविकुलमधुपान् प्रमोदयन्ती, तदिह मताऽजलतेव पुष्पिताग्रा ॥ ५३ ॥
( अन्वयः) चेत् विपमचरणयोः ननौर-यौ, तदन्यपादयोः न-ज-ज-रगाव स्युः, तत् इह कविकुलमधुपान् प्रमोदन्ती अorate पुरताया मता ॥
( टीका ) यदि चेन विषमचरणयो:, अर्थात् प्रथम-तृतीयपादयो: नगमा - नगगनगगा यगणाः तदन्यपादयोः द्वितीय- चतुर्थचरणयो: नगगा- जगण जगरण -गण-गुरवः स्युन तत् सदा इह छन्दःशास्त्र कविकुलमधुपान् = कतिजनामरान प्रमोदयन्ती हर्षयन्ती पुष्पितः अग्र:- अग्रभागी यस्थास्तादृशी मजलतेव=== कमलवलीव पुष्पिताग्रा मताख्याना अत्र क्रमेण प्रथम-तृतीययो: - ( |||||Sisis) इति, द्वितीयचतुर्थयोच (IPS|sisiss) इति स्वरवर्णक्रमः ||
( प्रति०) व्याख्याता: प्रतिशब्दाः ॥
( भाषा) जिस के पहले तथा तीसरे चरण में दो नगर एक रगण और एक यगय हो, तथा दूसरे और चौथे में एक दो जग एक रंग और एक गुरु हो उसको पुष्पिताग्रा
,
For Private And Personal Use Only