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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) ढाल दूसरी॥ गोरोनहार लोंगारो सुहावे जेरी परमलमहलामें आवे ॥ हालरीयेरी देशी॥ श्रव आदि जिनेश्वर पूजो इण समानही देव दुजो ॥ पंदरेसे न तीसे गणधरचोपमा सुजगीसे ॥१॥ सञ्चाधर चैत्य करायो एतो पुण्ये अचल रहायो॥ दीजे प्रदक्षणा सारो देवाधिदेव जुहारो ॥२॥ जिनबिंब छ सो सातो हस्ती पर मरुदेवो मातो । सिकाचल ममण स्वामी जगजीवन अंतर जामी ॥३॥ढूंतोरे चरणे आयो मनडामें वर्ष सबायो॥ तुम गुण को पारनावे जो सहस्रजीव्हकरि गावे ।। श्रीचंना प्रत्तु चित वसिया मेरा हदय कमल जलसिया ॥ जिनतिन नुवन जहारिया भेटता का. रज सारिया!!५॥पंदरेसे नेवली पंदरे लणशालीलान लीयो धनरे । सोले से ने पेंतालो जिनबिंब चकुसे जालो ॥६॥ अष्टापदतिर्थ राजे तिहां कुंथु जिनेश्वरबाजे॥पंदरे से ने उनीस एतो चोपमा गोत्रभेदी से ॥७॥चारूं खुटे गौतम स्वामी में लेट्या अंतर जामी ॥ सतचारके उपर जाणो चालीस ने चार वखाणो॥॥ अचिरा सुत उपर सोहे मूल नायक तन मन For Private and Personal Use Only
SR No.020916
Book TitleVruddhi Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVruddhiratnamuni
PublisherKeshrisinhji Saheb
Publication Year1915
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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