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( ४१ )
जोती जिगमिग जागतीजी । अब आरतीयांरी बिब देख || अ० ॥ ५ ॥ गगन नगारा घुर रयाजी ठुलरया पुष्प विशेष || अब० || ६ || सुरसब च विमान में जी, अरु इन्द्रादिकमिल आय ॥ अत्र • ॥ ७ ॥ जक्ति सहित जगवानकाजी, निज श्रीमुख दर्शन पाय ॥ ० ॥ ८ ॥ ज्ञाता अंगसु द्रोपदी जी, चित मनसुं पूज्या जिनराज ॥ ० ॥ ए ॥ विधविधसो वरदान देकर, सारयामनरा काज ॥ अब० || १० || रावण और मंदोदरीजी, मिल अष्टापद पर नाच || अब० ॥ ११॥ जांघ नाम की तार करीनेरेश्री जिन जक्ति साच ॥ अब० ॥ १२ ॥ यष्टमहोत्सव यदसुंजी, कांइ दिन प्रति अधिक होय |
• || १३ || श्रीगोड़ी पारस प्रभुजी, थारां दर्शन करे सबकोय ॥ य० ॥ १४ ॥ तेजकवि करजोम कंजी, तनमन से विनति तोय || अव० ॥ १५ ॥ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
|| देशी फूलजी की || आज जले चित जावसुं मिलपूजो श्रीगुरुदेव | जिन श्राचार्य हो ॥ १ ॥ जीयो के गुरुवरपरत कपरचा देरदे, कलि काल समय महाराज || जिनखाचा० ॥२॥
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