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( ३० ) ॥राग माम तालदादरा ॥
दादा जिनदत्तएसृरि महिमापरि महियलमेगुरुराज ॥कर दुर्मति दूरि मिथ्यस्वचूरि सूरिश्वरां शिरताज ॥ दादा० ।। बाहादेमाता वांगिताता कुलमें प्रगटे गुरुनान ॥ वसभसूरिक वचन तुमगुरु जिनमतकेहो जान।प्रगटे पुन्य अंकूरी। म०म० ॥१॥ शोनाफेलानी जय श् वानी बोले सकल जहान ॥ गुणत्रोसे सोहे अतिशय जगो २ थुम्भथान ॥ समरयां हाजर हजूरी ॥म०म० ॥२॥ बावीश जोधा सबकारोध्या चार चोर वसकीद्ध ॥ दशविध धर्मकुं धारण करके प्राचारज पदलीच॥वाजेजसकीतूरी ॥ म० म ॥३॥ मेरे सहायक गच्छके नायक जीसके नंजणहार ॥ रामकहतहेसेवाचहतेह चरणनपर जाउंवार । सारमोरी लहोरी ॥ म म० ॥! इति पदं संपूर्णम् ॥
॥ कब्बाली तालधमाल ॥
गुरु सम को नहीजग में यही हम दिलमें गयाहे । गुरुमहाराज-एकहीरा हमीने खोज पायाहै। गुरुकी कर्ते है बंदगी उसीसे हमको नफाद उठाते
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