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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३० ) ॥राग माम तालदादरा ॥ दादा जिनदत्तएसृरि महिमापरि महियलमेगुरुराज ॥कर दुर्मति दूरि मिथ्यस्वचूरि सूरिश्वरां शिरताज ॥ दादा० ।। बाहादेमाता वांगिताता कुलमें प्रगटे गुरुनान ॥ वसभसूरिक वचन तुमगुरु जिनमतकेहो जान।प्रगटे पुन्य अंकूरी। म०म० ॥१॥ शोनाफेलानी जय श् वानी बोले सकल जहान ॥ गुणत्रोसे सोहे अतिशय जगो २ थुम्भथान ॥ समरयां हाजर हजूरी ॥म०म० ॥२॥ बावीश जोधा सबकारोध्या चार चोर वसकीद्ध ॥ दशविध धर्मकुं धारण करके प्राचारज पदलीच॥वाजेजसकीतूरी ॥ म० म ॥३॥ मेरे सहायक गच्छके नायक जीसके नंजणहार ॥ रामकहतहेसेवाचहतेह चरणनपर जाउंवार । सारमोरी लहोरी ॥ म म० ॥! इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥ कब्बाली तालधमाल ॥ गुरु सम को नहीजग में यही हम दिलमें गयाहे । गुरुमहाराज-एकहीरा हमीने खोज पायाहै। गुरुकी कर्ते है बंदगी उसीसे हमको नफाद उठाते For Private and Personal Use Only
SR No.020916
Book TitleVruddhi Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVruddhiratnamuni
PublisherKeshrisinhji Saheb
Publication Year1915
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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