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रवतवसुराये संसारअनंतोउपाये कथणी०॥ १ ॥ तिर्थंकरगोत्रउन्नमउपायो रावण जिननक्तकहायो श्रेणिकचरणेचितलायो संसारतणुंशंतपायो क०॥ २॥ असीमस्तककरेरहाये खरफितरुधिरेकाये उ पशमसंबरविवेक पदपाइलह्योपदबेक कथ०३॥ निजन्नगनीनोगीराये चंद्रशिखरशिवपाये कामी क्रोधीपदध्य ये केइनवदुखसेबुटाये कथ० ॥ ४ ॥ श्रीरत्नकेसजगस्वामी श्रीचक्रहस्तशिवगामी साकृ तपरमेस्वरसुमति मुशर्तिकनीकेसप्रसस्ति कथ०॥ ५॥ निराहारशमूर्तिध्वजनाथ स्वेतांगश्रीचारुना थ देवनावयाधिकस्वामी पुष्फ नर नादशिवरामी कथ० ॥ ६ ॥ प्रतिकृतमेपेंद्रनाथ तपोनिघकाच लनाथ भरण्यदशाननसंतिक जिनदासकहेप्रणमि क कथ० ॥ ७॥ इति संपूर्णा ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपाक्षतकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ नपचारवरैर्वयंजिनेन्द्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ अथ दसमी पूजा ॥ दोहा ॥ दसआसातनटालिये मुख्यचौरासीमांहि । दसपालोदसशदरी धनधन दसजगमांहि ॥ १ ॥ पुस्करार्धपूर्वनरत अतीतका लेविचार।मदगंतादिकजिनवरू चौवीसेमनुहार ॥ रागमालकोसगौली ॥ आजमेंप्रनुदरिसणपायो ए देसी ॥ अजमोयेरंगचढ्योहेसवायो सुरनरमुनिज नमंदरशाये देखतहरखनमायो शजमोये० टेक ॥ केइनाचेकेइस्वरमालापे केइजिनध्यानलगायो ध
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