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लान देते हौ ? कहा जिसने हमको नमस्कार कि या, चमत्कार पाय राजा मेराघर पवित्र करनां कहके घर गया, एकसमय सिद्धसेन विक्रमके न वीन चार इलोक वनाय लेके राजाकी ऊडी पर गया, छमीदार के मुख से कहलाया ॥
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दिदृक्षुर्भिक्षुरायातो द्वारेतिष्ठति वारितः । हस्तन्यस्तचतुः नूलोको यद्वागच्छतुगच्छतु ॥ १ ॥ आपके देखनेकी इच्छा से एकनिक्ष आया है हम ने मना किया सो दरवाजेपर हातमे चार श्लोक लिए खडा है इहां यावे वा जाय ? राजानेकहा ॥ दीयतांदशलचाणि शासनानिचर्द्दश । हस्त न्यस्तचतुःश्लोको यद्वागच्छतु गच्छतु ॥ २ ॥ दशलाख दो चउदह शासनदो हातमें चारश्लो कलिए इहां वे चाहेजाय ॥ तब राजाके पास गया, राजा पूर्व सन्मुखही सिंहासन पर बैठेथे, सूरिने एकश्लोक कहा ॥
पाहतेत निस्साने स्फुटिते रिपुघटे । गलिते तत्प्रियानेत्रे राजचित्रमिदं महत् ॥ १ ॥ हेराजन् ! यह बडा आश्चर्य है कि तुमारे नगा रेपर चोप पडनेसे फूटातो शत्रुओंका हृदयरूपी घना भर पानी उनकी स्त्रियोंके यांख से चूनेल गा ॥ यह सुनके राजा दक्षिणदिशा सन्मुख हो बैठे, और मनमे कहा पूर्वदिशाका राज इसकों दिया, सूरीने सन्मुख होय दूसरा श्लोक कहा ॥