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मट जाइयइ । कालउकंबल अरुनी बह बासई नरियउ दीव थट्ट । एवडपभियउ नीलइफाड । अवर किसुंबइ सग्गनिलाड,, ॥ प्रसन्नहोके ग्वा लियोने कहा इस ब्राह्मणको जीतलिया, पीबेरा जसन्नामेभी मुकंदको जीतके अपना शिष्य वना या, कुमुदचंद्र ऐसा नामदिया, सूरिपद देनेके स मय सिठसेन नाम दिया, एकदिन वादके लिये कोइ भह आया, उस्को सुनावनेके लिये नमोप रिहंताणं इनकी जगह नमोहत्सिछाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः ऐसाकहा शोर गुरुसे कहने लगाकि सब सिहांत मैं संस्कृतमे बनाऊं गुरुबोले चारित्र की इच्छा करनेवाले बाल, स्त्री, मंद, मूखोंके लि ये सिछांत सब प्राकृत बनायेहैं, संस्कृतमे बनाऊं ऐसा कहनेसे तुझको बडा प्रायश्रित लगा कहके गच्छसे बाहर करदिया, संघने वृद्धवादीको बिन तोकिया कि ऐसे उत्कृष्ट कवीगुणीको गच्छसे बा हर न करिये, वृद्धवादीने कहा साधुका वेषबगेक नावसे साधुरहके अठारह राजाओको जैनी करे भर एक नवीन तीर्थ प्रगट करे तबगच्छमे लिया जायगा ऐसा वचन गुरुका अंगीकारकरके उजय नीमे गए, एकदिन राजाने रस्तेमे पूछा तुम कौन हो? कहा सर्वज्ञका पुत्र लं, तव राजाने मनमेही नमस्कार किया, सिद्धसेनने ऊंचाहातकर ऊंचेश ब्दसे धर्मलान दिया, राजाने पूछा किसको धर्म