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थाल गया है बहां जाय उसी थालमे टुक को जोक दें, इस अभिप्रायसे टुकडे को लियेही गुरु के उपदेश से दीक्षा लिया उसथाल के देखने के इच्छासे ग्राम नगरादिकमे भटकता फिरा उस नै गमकीभी चारित्रान्नावकी आपत्ति ओय पडेगी २ न दूसरा पद, अंगपर धारण करना परिग्रह हो गा तो गंधहस्ती के खंधेपर बैठी मरुदेवी माता के स्वर्ण मणिरत्न जटित आन्नरणादि धारण कर नेसे परिग्रहीपना होजायगा, उससे चारित्रका अ नाव, केवल ज्ञानकी प्राप्ति और मुक्तिका अलाभ का प्रसंग होजायगा, मरुदेवी माताको अलंका रादि धारण करके चारित्र, केवल ज्ञान और मुक्ति लान हुआ है , और बल्कलचीरी महासत्व को मुकट कुंकलादि आनरणों से अलंकृत हो कभी वनमे तपस्वी लोगों के कुटी में उनके उपकरण देखतेमात्र संस्कारसे जातिस्मरण हो गया , उस से पूर्व भवमेशाचरण किये हुए चारित्रका स्मरण होजाने से उसी समय एनाहार्यवीर्य अर्थात् अ नंत शक्ति प्राप्त भई उससे दपकरेणी चढके के वल ज्ञान पाया सो असंगत होजायगा, तीसरा प हनी नहीं कह सकते, कारणकी न यह मेरा धन है, नमैं इसका स्वामी इस प्रकार यतीके अ हंकार ममकारका अभाव है, इससे स्वस्वामिभाव संबधनी सिछ नही होता है तो परिग्रह कहांसे