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वह कुकर्म त्याग न करेतो उस्का लिंग छीन लेना यहांतक च्छागमोमे कहा है, इससे इससे आधुनिक साधु धर्मोपदेश करते है जिन जक्त हैं विशिष्ट चारित्र पाल नही सक्ते तोजी वंदनीय नही हो सकते हैं, बंदना के निषेध वचन इनमे लगावना यह केवल द्वेषसे उलटी प्ररूपणा है, इससे वह छापही मिथ्यादृष्टी हुआ ॥
परिग्रहको पापकर्म कहा उस्मे परिग्रह किस्को कहना चहिये ? क्या रत्नजटित हेमांगुलीयकादिक द्रव्यका स्पर्शमात्र परिग्रह है ? अथवा अपने अं गमे धारण करना सो परिग्रह है ? अथवा यह मेराधन है मैं इसका मालिक इस रूप से स्व स्वामिनावसंबंध है सो परिग्रह है ? अथवा पिटारा संदूक यादिमे चोरी से धनको गुप्त रखना सो परिग्रह है ? अथवा मोहसे दूसरे के धनमे अदत्तादान बुद्धि है सो परिग्रह है ? नही पहिला पक्ष कह सकते कारणकी श्रावक कदाचित् साधु के पांवादिकी विश्रामणादि विधि करे उसमे श्रावक के हात अंगूठी कडा आदि है उसका स्पर्श होने से यती के चारित्र जंगका प्रसंग होजा यगा और प्रौदीच्य मथुराके बनियेकी संपत्ति कर्म विपाक से उड़के जानेलगी उससमय उडताहुया सोनेका थाल पकडनेसे उसका एक टुकडा रहगया थाल उडगया, तब उसने विचारा कि जिस जगह