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व्यवहारनयसे? यदि निश्चयनयसे कहेंतो बनस्थो कों दुरधिगम्य है कारण की निश्चय तो केवल ज्ञा नही से होता है ॥
यदि हठसे निश्चय करके मिथ्यादृष्टी ही मानेंगे तो होय, हम तुमको क्या, अंगारक मुनिराज नव पूर्वके पाठी थे परंतु आप करके समान एभव्य थे उनके भी उपदेशसे पांचसे गजेंद्र सरीखे अ णगार सम्यक चारित्र पालन करनेवाले होके समति मे गए, इस्से वर्तमान कालिक साधुवोंके शुइधर्ना पदेश से श्रावकादि शवश्य सम्यक्तको प्राप्त होंगे इस्म कुब संदेह नही, तो किसी प्रकार निश्चय नयसे भी मिथ्यादृष्टी नही होसकते, उपदेशकोंको दीपक सम्यक्त होता है ॥ ॥ ___ व्यवहार नयसे तो मिथ्याष्टित्व उनमें अप्रसिछ ही है और प्रवचन वाक्य नी है ॥ ॥ निच्छयनयस्सचरण स्सुवघाए नाणदंसबहोवि । बवहारस्सउचरणे हयंमि भयणाउसेसाणं ॥ १ ॥ निश्चयनयसे चारित्रका भग होयतो ज्ञान दर्शन का नी भंग होय यदि व्यवहार नयसे चारित्रका भंग होय तो ज्ञानदर्शन का भंग नही होता है प्रत्युत नजना होती है इस प्रवचन वाक्य से स म्यग्दृष्टित्व ही सिठहोताहै तो व्यवहार नयसेनी मिथ्यादृष्टीत्व नही हो सकता ॥
और असंयती पाखंडी लिंगधारी इनकों ब
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