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प्रस्तावना
यद्यपि सकलकीतिने अपने जन्मस्थान और माता-पिता आदिका कोई भी उल्लेख नहीं किया है, तथापि गुणराजरचित सकलकीर्तिज्ञानसे पता चलता है कि उनका जन्म 'अणहिल्लपुर पट्टण' (गुजरात ) निवासी हुमड़ जातीय श्री करमसिंहजीकी पत्नी शोभादेवीकी कुक्षिसे हुआ था । उनके माता-पिताने उनका नाम पूर्णसिंह रखा था । वे अपने पांचों भाइयोंमें सबसे ज्येष्ठ थे । विवाहित होनेके पश्चात् आप संसारसे विरक्त हो गये और 'नेणवां' ग्राम आकर उन्होंने भ. पद्मनन्दिसे दीक्षा ले ली । गुरुने उनका नाम सकलकीर्ति रखा । उक्त रासके उक्त अर्थसूचक पद्य इस प्रकार हैं
दस्युं गुरुनिर्ग्रन्थ मूलसंघि गुरुगाइस्युं ए । गुर्जर देश मंझार अणहिलवाडो पाटणुं ए ॥ २ ॥ हुँ ज्ञाति सिणगार करमसी साह तिहाँ बसिए । सोभिसिरी देवीयत च्यारि पदारथ तिहां बसिए ||३|| तस धरि ए नन्दन पाँच धन कण पूत संजूत ताय । पालए जिणवर धर्म सातइ व्यसन म इच्छति ताय ॥४॥ संघ ए पहिलो पूत बंधन तोड़ि कर्मधूय ।
धिग धिग ए ए संसार भवि भवि जामण मरण भय ॥५॥
परियणू ए माय में बाप संबोधि करि नोकल्या ए । पहूँच्यो ए सांबरदेस नयणवाह पुरी तिहां गया ए ॥१२॥ तिहां छे ए जिणवरधर्म पोमनंदी गुरु पाट धरु | नसिंघ ए सेवइ पाए गुरुक्रमि लीधऊ ज्ञानघरु ॥१३॥
श्री सकलकीरति गुरुनाम कीयो श्रीमूलसंघ सिणगार ।
तां पदमनंदी गुरु पातली फोड्या बहुत संसार ।। १९ ।।
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७. सकलकीर्ति रचित ग्रन्थ
१. कर्म विपाक - संस्कृत गद्यमें रचित इसका प्रमाण ५४७ श्लोक है ।
२. धर्म प्रश्नोत्तर- धार्मिक प्रश्नोंको उठाकर उनके उत्तर रूपमें रचित पद्ममय यह ग्रन्थ १५०० श्लोक प्रमाण है ।
३. प्रश्नोत्तर श्रावकाचार - प्रश्न और उत्तरके रूपमें श्रावक धर्मका विस्तृत वर्णन करनेवाले इस ग्रन्थका प्रमाण २८८० श्लोक है ।
४. मूलाचार प्रदीप - प्राकृत मूलाचारको आधार बनाकर मुनिधर्मके वर्णन करनेवाले इस ग्रन्थका प्रमाण ३३६५ श्लोक है ।
५. सिद्धान्तसार दीपक - जैन सिद्धान्तके विषयोंका विस्तृत एवं सुगम रीतिसे वर्णन करनेवाले ग्रन्थका प्रमाण ४५१६ श्लोक है ।
६. सार चतुर्विंशतिका प्रमाण २५२५ श्लोक है ।
७. सुभाषितावली का प्रमाण ५७५ श्लोक है ।
८. आदिनाथ या वृषभचरितका प्रमाण ४६२८ श्लोक है ।
९. शान्तिनाथ चरितका प्रमाण ४३७५ श्लोक है ।
१०. मल्लिनाथ चरित ९२४ श्लोक प्रमाण हैं । ११. पार्श्वनाथ चरित २८५० श्लोक प्रमाण है । १२. वर्धमान चरित ३०५० श्लोक प्रमाण है ।
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