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श्री विपाक सूत्र
| प्रथम अध्याय
(२) अग्रायणीय-पूर्व- इसमें सभी द्रव्य सभी पर्याय और सभी जीवों के परिमाण का वर्णन है।
(३) वीर्य-प्रवाद-पूर्व- इस में कर्मसहित और बिना कर्म वाले जीवों तथा अजीवों के वीर्य (शक्ति) का वर्णन है ।
(४) अस्ति-नास्ति-प्रवाद-पूर्व - संसार में धर्मा स्तिकाय आदि जो वस्तुए विद्यमान हैं तथा अाकाशकुसुम आदि जो अविद्यमान हैं उन सब का वर्णन इस पूर्व में है ।
(५) ज्ञान-प्रवाद-पूर्व-इसमें मति ज्ञान प्रादे ज्ञान के । भेदों का विस्तृत वर्णन है । (६) सत्य प्रवाद-पूर्व-इसमें सत्यरूप संयम या सत्य व वन का विस्तृत विवेचन किया गया है। (७) आत्म-प्रवाद-पूर्व-इसमें अनेक नय तथा मतों को अपना से आत्मा का वर्णन है ।
() कर्मप्रवाद-पूर्व- इसमें आठ कर्मों का निरूपण प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश आदि भेदों द्वारा विस्तृत रूप से किया गया है ।
(E) प्रत्याख्यान-प्रवाद-पूर्व-इसमें प्रत्याख्यानों का भेद प्रभेद पूर्वक वर्णन है । (१०) विद्यानु-प्रवाद-पूर्व-इस पूर्व में विविध प्रकार की विद्यानों तथा सिद्धियों का वर्णन है ।
(११) अवन्ध्य-पूर्व इसमें ज्ञान, तप, संयम आदि शुभ फल वाले तथा प्रमाद अादि अशुभफल वाले अवन्ध्य अर्थात् निष्फल न जाने वाले कार्यों का वर्णन है ।।
(१२) प्राणायुष्प्रवाद-पर्व-इसमें दश प्राण और आयु या द का भेद प्रभेद पूर्वक विस्तृत वर्णन है ।
(१३) क्रिया-विशाल-पूर्व-इसमें कायिकी, प्राधिकरणकी अादि तथा संयम में उपकारक क्रियाओं का वर्णन है ।
(१४) लोक-बिन्दुःसार-पूर्व- संसार में श्रुत ज्ञान में जो शास्त्र बिंदु की तरह सब से श्रेष्ठ है, वह लोक बिदुसार है।
पूर्व का अर्थ है-तीर्थ का प्रवर्तन करते समय तीर्थ-कर भगवान जिस अर्थ का गणधरों को पहले पहल उपदेश देते हैं अथवा गणधर पहले पहल जिस अर्थ को सूत्र रूप में गूथते हैं उसे पूर्व कहते हैं।
व्याख्या सर्वांगेम्यः पूर्व-तीर्थकरैरभिहितत्वात् पूर्वाणि तानि यथा-सर्वद्रव्याणां चोत्पादप्रज्ञप्ति-हेतुरुत्पादम् । १ । सर्वद्रव्याणां पर्यायाणां सर्व-जीव-विशेषाणां च अग्रं परिमाणं वयते यत्र तद् अग्रायणीयम् । २ । जीवानामजीवानां च सकर्मे-तराणां च वीय प्रवदतीति वीर्य-प्रबादम । ३। अस्ताति नास्तेरुपलक्षणं, ततो यल्लोके यथाऽस्ति यथा वा नास्ति अथवा स्याद्-वादाभित्रायेण तदेवास्ति नास्तीति प्रवदात अस्ति-नास्ति-प्रबादम् । ४ । म तज्ञानादिपञ्चकं म-भेदं प्रवदतीति ज्ञान--प्रवादम् ५। सत्यं संयमः सत्यवचनं वा तत् सभेदं सप्रतिपक्षं च यत् प्रवदति तत् सत्य-प्रवादम् ।६। नयदर्शनरात्मानं प्रवदति आत्म-प्रवादम् । ७ । ज्ञानावरणाद्यष्टविधं कर्म प्रकृति-स्थित्यनुभाग-प्रदेशादिभेदरन्य श्चोत्तरभेटैभिन्न प्रवद ते कर्म प्रवादम् । ८। सर्व प्रत्याख्यान-स्वरूपं प्रवदत प्रत्याख्यान प्रवादम् . तदेकेदशः प्र-याख्यानम् , भीमवत् । ९ । विद्यातिशयान् प्रवदति विद्याप्रवादं । १० । कल्याणफल-हेतुत्वात् कल्याणम् अवन्ध्यमि ते चोव्यते । ११ । आयु:-प्राणविधानं सर्व सभेदम् अन्ये च प्राणा वर्णिता यत्र तत् प्राणावायम् । १२ । कायिक्यादय: संयमाद्याश्च क्रिया विशाला सभेदा यत्र तत् क्रिया-विशालम् । १३ । इहलोके श्रुतलोके वा बिंदुरवाक्षरस्य सर्वोत्तमं साक्षरसन्निपात-परिनिष्ठितत्वेन लोकबिन्दुसारम् । १४ ।
(अभिधान चिन्तामणि)
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