________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
(६२)
श्री विपाकसूत्र
[प्राक्कथन
हूं। आपकी असीम कृपा से ही मैं प्रस्तुत हिंदीटीका लिखने का साहस कर पाया हूं। मैंने आप श्री के चरणों में विपाकत का अध्ययन करके उस के अनुवाद करने की जो कुछ भी क्षमता प्राप्त की है, वह सब आपश्री की ही असाधारण कृपा का फल है, अतः इस विषय में परमपूज्य आचार्य श्री का जितना भी आभार माना जाय उतना कम ही है। मुझे प्रस्तुत टीका के लिखते समय जहां कहीं भी पूछने की आवश्यकता हुई, आपश्री का ही उस के लिए कष्ट दिया गया और आपश्री ने अस्वस्थ रहते हुए भी सहर्ष मेरे संशयास्पद हृदय को पूरी तरह समाहित किया, जिस के लिये मैं आप श्री का अत्यन्तान्त अनुगृहीत एवं कृतज्ञ रहूँगा ।
इस के अनन्तर मैं अपने जेष्ठ गुरुभ्राता, संस्कृतप्राकृतविशारद, सम्माननीय पण्डित श्री हेमचन्द्र जी महाराज का भी आभारी हूँ। आप की ओर से इस अनुवाद में मुझे पूरी २ सहायता मिलती रही है। आप ने अपना बहुमूल्य समय मेरे इस अनुवाद के संशोधन में लगाया है और इस ग्रन्थ के संशोधन कर इसे अधिकाधिक स्पष्ट, उपयोगी एवं प्रामाणिक बनाने का महान् अनुग्रह किया है, जिस
लिये मैं आपश्री का हृदय से अत्यन्तात्यन्त आभारी हूं । तथा मेरे लघुगुरुभ्राता सेवाभावी श्रीरत्नमुनि जी का शास्त्रभंडार शास्त्र आदि का ढूढ कर निकाल कर देने आदि का पद पद पर सहयोग भी भुलाया नहीं जा सकता। मैं मुनि श्री का भी हृदय से कृतज्ञ हूं। इस के अतिरिक्त *जिन २ ग्रन्थों और टीकाओं का इस अनुवाद में उपयोग किया गया है उन के कर्ताओं का भी हृदय से आभार मानता हूं । अन्त में आगमों के पण्डितों और पाठकों से मेरी प्रार्थना है कि-
लुधियाना, जैनस्थानक, पौष शुक्ला १२, सं० २०१०
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
गच्छतः स्खलनं क्वापि भवत्येव प्रमादतः ।
हसन्ति दुर्जनास्तत्र, समादधति सञ्जनाः ॥
इस नीति का अनुसरण करते हुए प्रस्तुत टीका में जो कोई भी दोष रह गया हो उसे सुधार लेने का अनुग्रह करें और मुझे उस की सूचना देने की कृपा करें । इस के अतिरिक्त निम्न पद्य को भी ध्यान में रखने का कष्ट करें -
नात्रातीव प्रकर्तव्यं दोषदृष्टिपरं मनः ।
दोषे विद्यमानेऽपि तच्चित्तानां प्रकाशते ॥
}
,
For Private And Personal
- ज्ञानमुनि
* जिन २ ग्रन्थों का श्रीविपाकसूत्र की व्याख्या एवं प्रस्तावना लिखने में सहयोग लिया गया है, उनके नाम प्रस्तुत सूत्र के परिशिष्ट नं० १ में दिये जा रहे हैं ।