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चतुर्थ अध्याय]
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
[२८९
पदार्थ-एवं खलु -इस प्रकार निश्चय ही । गोतमा !-हे गौतम ! । तेणं कालेणं-उस काल में । तेणं-उस । समरणं -समय में । इहेव -इसी । जंबुद्दीवे दीवे-जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत । भारहे वाले-भारतवर्ष में । छगनपुरे-छगलपुर । णाम-नाम का | गगरेनगर । होत्या -था। तत्थ-वहां । सीहगिरी-सिंहगिरि । णाम-नामक । राया-राजा। होत्थाथा । महया०--जो कि हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् था। तत्थ णं-उस । छगलपुरेछगलपुर । णगरे-नगर में । छरिणए-छणिक । णाम-नामक । छागलिए-छागलिकछागों-बकरों के मांस से आजीविका करने वाला वधिक-कसाई । परिवसति-रहता था, जोकि । अड्ढे०धनी तथा अपने नगर में बड़ा प्रतिष्ठित था और । अहम्मे-अधर्मी । जाव-यावत् । दुप्पड़ियाणंदेदुष्प्रत्यानन्द अर्थात् बड़ी कठनाई से प्रसन्न होने वाला था । तस्स गं-उस । छरिणयस्स-छरिण. एक । छागलियस्स-छागलिक के। वहवे - अनेक । अयाण य-अजों-बकरों। एलाण य-भेड़ों। रोज्माण य - रोझों- नीलगायों । वसभाण य- वृषभो । ससयाण य-शशकों - खरगोशों । पसयाण यमृगविशेषों अथवा मृर्गाशशुयों । सूयराण य-शूकरों- सूयरों । सिंहाण य - सिंहों । हरिणाण य-हरिणों। मऊराण य-मयूरों और । महिसाण य -महिषों-भैंसों के । सतवद्धानि- शतबद्ध - जिस में १०० बन्धे हुए हों । सहस्सबद्धानि-सहस्रबद्ध - जिस में हजार बंधे हुए हों, ऐसे । जूयाणि-यूथ -समूह । वाडगंसिवाटक -बाडे में अर्थात् बाड़ आदि के द्वारा चारों ओर से घिरे हुए विस्तृत खाली मैदान में । सन्निरुद्धाई -सम्यक प्रकार से रोके हुए । चिट्ठन्ति-रहते थे । तत्थ - वहां । बहवे-अनेक । पुरिसा -पुरुष । दिण्णभइभत्तवेयणा-जिन्हें वेतन के रूप में भृति - रुपये पैसे और भक्त-भोजनादि दिया जाता हो, ऐसे पुरुष । बइवे -अनेक । अए य-अजों-बकरों का । जाव-यावत् महिसे य - महिषों का । सारक वमाणा- संरक्षण तथा । संगोवेमाणा - संगोपन करते हुए । चिट्ठति-रहते थे । अन्ने य-और दूसरे । बहवे-अनेक । पुरिसा-पुरुष । अयाण य-अजों को । जाव-यावत् । महिसाण य -महिषों को । गिहंसि-घर में । निरुद्धा-रोके हुए। चिटुं. ति-रहते थे, तथा । अन्ने य -और दूसरे । से-उस के। बहवे -अनेक । पुरिसा-पुरुष । दिएणभतिभत्तवेयणा -जिन को वेतन के रूप में भृति--रुपया, पैसा तथा भक्त-भोजन दिया जाता हो । बहवे-अनेक । अए य -अजों । जाव-यावत् । महिसे य -महिषों को, जो कि । सयर य-सैंकड़ों तथा । सहस्सर - हज़ारों की संख्या में थे । जीवियाउ-जोवन से । ववरोवंति २रहित किया करते थे, करके। मंसाई-मांस के । कप्पणीकप्पियाई-कर्तनी - कैंची अथवा छुरी के दाग टुकड़े । करेंति-करते हैं । २त्ता-कर के । छरिणयस्त - छरिणक । छालयस्स-छागलिक को । उवणेति-ला कर देते थे । अन्ने य -और दूसरे । से-उस के । बहवे-अनेक । पुरिसापुरुष । ताई-उन । बहुयाई- बहुत से । अयमंसाई - बकरों के मांसों । जाव - यावत् । महिसमसाई-महिषों के मांसों को । तवरलु य-तवों पर । कवल्लीलु य-कड़ाहों में । कंदसुय-कन्दुओं पर अर्थात् हांडों में, अथवा कड़ाहियों में, अथवा लोहे के पात्र-विशेषों में। भज्जणएसु य-भर्जनकों-भूनने के पात्रों में, तथा । इंगालेसु य-अंगारों पर । तलति-तलते थे । भज्जे ति-भजते थे ।सोल्लिंति-शूल द्वारा पकाते थे । तलंता य ३-तल कर, भज कर और शूल से पका कर । रायमग्गंसि-राजमार्ग में । वित्ति कप्पेमाणा-आजीविका करते हुए। विहरन्ति-समय व्यतीत किया करते थे । अप्पणा वि य णं-और स्वयं भी । से-वह । छरिणयए .
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