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(२२)
श्री विपाकसूत्र
[प्राकथन
नींद की हालत में कर डालता है, उस की नींद को स्त्यानर्द्धि या स्त्यानगृद्धि कहते हैं । यह निद्रा जिसे
आती है उस में उस निद्रा की दशा में वासुदेव का आधा बल आ जाता है । जिस कर्म के उदय से ऐसी नींद आती है, उस कर्म का नाम स्त्यानर्द्धि या स्त्यानगृद्धि है ।
(३) वेदनीय कर्म के २ भेद हैं । उन का नामनिर्देशपूर्वक विवरण निम्नोक्त है
१-सातवेदनीय कर्म-जिस कर्म के उदय से आत्मा को विषयसम्बन्धी सुख का अनुभव होता है, उसे सातवेदनीय कहते हैं।
___२--असातवेदनीय कर्म-जिस कर्म के उदय से आत्मा को अनुकूल विषयों की अप्राप्ति से अथवा प्रतिकूल विषयों की प्राप्ति से दुःख का अनुभव होता है, उसे असातवेदनीय कहते हैं ।
(४) मोहनीय कर्म के- १-दर्शनमोहनीय और २- चारित्रमोहनीय, ऐसे दो भेद हैं । जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसा ही समझना यह दर्शन है अर्थात् तत्त्वार्थश्रद्धान को दर्शन कहते हैं। यह आत्मा का गुण है । इस के घातक कर्म को दर्शनमोहनीय कहा जाता है और जिस के द्वारा आत्मा अपने असली स्वरूप को पाता है उसे चारित्र कहते हैं । इस के घात करने वाले कर्म को चारित्रमोहनीय कहते हैं । दर्शनमोहनीय कर्म के ३ भेद निम्नोक्त हैं
१--सम्यक्त्वमोहनीय-जिस कर्म का उदय तात्त्विक रुचि का निमित्त हो कर भी औपशमिक या क्षायिक भाव वाली तत्त्वरुचि का प्रतिबन्ध करता है, वह सम्यक्त्वमोहनीय है।
२--मिथ्यात्वमोहनीय- जिस कर्म के उदय से तत्त्वों के यथार्थरूप की रुचि न हो, वह मिथ्यात्वमोहनीय कहलाता है।
३--मिश्रमोहनीय-जिस कर्म के उदयकाल में यथार्थता की रुचि या अरुचि न हो कर दोलायमान स्थिति रहे, उसे मिश्रमोहनीय कहते हैं ।
चारित्रमोहनीय के कषायमोहनीय और नोकषायमोहनीय ऐसे दो भेद उपलब्ध होते हैं। १- जिस कर्म के उदय से क्रोध, मान, माया श्रादि कषायों की उत्पत्ति हो, उसे कषायमोहनीय कहते हैं, और २- जिस कर्म के उदय से आत्मा में हास्यादि नोकपाय (कपायों के उदय के साथ जिन का उदय होता है, अथवा कपायों को उत्तेजित करने वाले हास्य आदि) की उत्पत्ति हो, उसे नोकषायमोहनीय कहते हैं । कषायमोहनीय के १६ भेद होते हैं, जो कि निम्नोक्त हैं--
१--अनन्तानुबन्धी क्रोध---जीवनपर्यन्त बना रहने वाला क्रोध अनन्तानुबन्धी कहलाता है, इस में नरकगति का बन्ध होता है और यह सम्यग् दर्शन का घात करता है। पत्थर पर की गई रेखा जैसे नहीं मिटती, उसी भांति यह क्रोध भी किसी भी तरह शान्त नहीं होने पाता ।
२--अनन्तानुबन्धी मान-जो मान-अहंकार जीवनपर्यन्त बना रहता है, वह अनन्ता
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