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(२१)
प्राक्कथन]
हिन्दीभाषाटीकासहित ४-मनःपर्यवज्ञानावरणीय-इन्द्रियों और मन की सहायता के बिना मर्यादा को लिए हुए जिस में संज्ञी जीवों के मनोगत भावों को जाना जाए उसे मनःपर्यवज्ञान कहा जाता है । इस ज्ञान के श्रावरण करने वाले कर्म को मनःपर्यवज्ञानावरणीय कहते हैं।
५--केवलज्ञानावरणीय-संसार के भूत, भविष्यत् तथा वर्तमान काल के सम्पूर्ण पदार्थों का युगपन-एक साथ जानना, केवलज्ञान कहलाता है । इस ज्ञान के प्रावरण करने वाले कर्म को केवलज्ञानावरणीय कहते हैं।
(२) दर्शनावरणीय कर्म के ह भेद हैं । इन का संक्षिप्त विवरण निम्नोक्त है--
१--चतुर्दर्शनावरणीय-आंख के द्वारा जो पदार्थों के सामान्य धर्म का ग्रहण होता है, उसे चक्षुर्दर्शन कहते हैं, उस सामान्य ग्रहण अर्थात् ज्ञान को रोकने वाला कर्म चक्षुर्दर्शनावरणीय कहलाता है।
२--अच दुर्दर्शनावरणीय-आंख को छोड़ कर त्वचा, जिला, नाक, कान और मन से पदार्थों के सामान्य धर्म का जो ज्ञान होता है, उसे अचक्षुर्दर्शन कहते हैं । इस के आवरण करने वाले कर्म को अच छुर्दर्शनावरलीय कहा जाता है।
३--अवधिदर्शनावरणीय-इन्द्रियों और मन की सहायता के बिना ही आत्मा को रूपी द्रव्य के सामान्य धर्म का जो बांध होता है, उसे अवधिदर्शन कहते हैं । इस के आवरण करने वाले कर्म को अवधिदर्शनावरणीय कहते हैं।
४--विनदर्शनावरणीय-संसार के सम्पूर्ण पदार्थों का जो सामान्य अवबाथ होता है, उसे केवलदर्शन कहते हैं । इस क आवरण करने वाले कर्म को केवलदर्शनावरणीय कहा जाता है ।
५--निद्रा-जा सोया हुआ जीव थोड़ी सी आवाज से जाग पड़ता है अथोत् जसे जगाने में परिश्रम नहीं करना पड़ता, उस की नोंद को निद्रा कहते हैं और जिस कर्म के उदय से ऐसा नींद आती है, उस कर्म का नाम भी निद्रा है।
६-निद्रानिद्रा-जो सोया हुआ जीव बड़े जोर से चिल्लाने पर, हाथ द्वारा जोर २ से हिलाने पर बड़ी मुश्किल से जागता है, उस की नींद को निद्रानिद्रा कहते हैं । जिस कर्म के उदय से ऐसी नींद आवे उस कर्म का भी नाम निद्रानिद्रा है।
७--प्रचला-खड़े २ या बैठे २ जिस को नींद आती है, उस की नींद को प्रचला कहते हैं। जिस कर्म के उदय से ऐसी नींद आवे उस कर्म का भी नाम प्रचला है ।
८--प्रचलाप्रचला—चलते फिरते जिस को नींद आती है, उस की नींद को प्रचलाप्रचला कहते हैं । जिस कर्म के उदय से ऐसी नींद आवे उस कर्म का भी नाम प्रचलाप्रचला है ।
है--स्त्यानद्धि या स्त्यानगृद्धि-जो जीव दिन में अथवा रात में सोचे हुए काम को
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